Tuesday 29 December 2015

पाँच साल

अक्सर, देखा करते थे वो दोनों,
एक-दूसरे को।
कभी,
अपनी-अपनी बालकनी में खड़े,
निहारा करते थे,
घंटों.......
एक-दूसरे को।
कभी आते-जाते,
रास्तों पर हो जाया करता था
आमना-सामना,
तो कभी,
सब्ज़ी और राशन खरीदते वक्त।
पर,
कभी,
बातचीत की पहल नहीं की,
उन दोनों ने ही।
डर था,
दोनों के ही मन में,
पर,
ये नहीं पता
किस बात का ?...........
शायद इनकार का।
यूँ ही चलता रहा,
एक-दूसरे को देखने-निहारने का यह क्रम,
बहुत लंबे समय तक,
और यह क्या ?
एक दिन लड़की ने देखा था,
कि लड़का,
दो सूटकेसों और एक बड़े बैग के साथ,
बैठ रहा था,
एक टैक्सी में।
खुद को कहाँ रोक पाई थी वह,
पागल सी जाकर,
खड़ी हो गयी थी,
उसके ठीक सामने,
भरी आँखों से कहा था-
“क्यों जा रहे हो ?
कहाँ जा रहे हो ?
मत जाओ प्लीज़।
मुझे एक आदत सी हो गयी है,
तुम्हें देखने की……”.
कुछ पल चुप रहकर,
उसने भी कहा था-
“मैं तो था ही कायर ........
डरता था अपनी भावनाएँ
व्यक्त करने में,...
अरे सच्ची !
मैं तो था ही बुद्धू...
समझ नहीं पाया,
तुम्हारी भावनाओं को।
काश! कि तुमने ही,
कुछ बता दिया होता।
अब तो जा रहा हूँ,
पाँच सालों के लिए अमेरिका,
और इस बीच का,
कुछ पता नहीं........
पर हाँ,
शायद,
आऊँ दुबारा कभी,
इस उम्मीद में,
कि शायद,
दिख जाओ तुम,
यूँ ही खड़ी बालकनी में,
नहीं कर रहा कोई वादा,
न ही ले रहा हूँ,
तुझसे कोई कसम,
और,
न ही ठिकाना है समय का...........
पर,
फिर भी,
बार-बार लगता है,
शायद मैं आऊँ,
दुबारा............
और दिख जाओ तुम,
यूँ ही..........”
“बस! बस!      
जाओ............
मेरी शुभकामनाएं हैं.......
नहीं माँगने आई थी,
कुछ भी मैं,
न ही कोई वादा चाहिए….
जाओ,
तरक्की करो,
आगे बढ़ो,
मैं ही कहाँ जुटा पाई थी,
हिम्मत!
तुमसे,
कभी कुछ कह पाने की,
पर हाँ..............
जहाँ भी रहूँगी,
दुनिया के जिस किसी भी कोने में,
मेरे दिलो-दिमाग और,
दुआओं में रहोगे तुम....”.
पल भर को चुप हो गए थे,
दोनों ही...........
फिर,
बैठ गया था टैक्सी में वह,
हाथ हिलाती रही थी देर तक वह भी।
अब करने लगी थी,
हर रोज़,
उसके पत्र का इंतजार……..
और सचमुच!
आ गया था उसका पत्र,
एक दिन………
“अगर दूर नहीं जाता....
तो शायद,
हम दोनों,
इतने पास नहीं आ पाते,
रोज़ देखता हूँ,
सैकड़ों लड़कियों को,
पर..........
कोई नहीं है,
तुम जैसी,
आज पूछता हूँ,
क्या मानती हो मुझे,
स्वयं के योग्य?
क्या माँग सकता हूँ,
तुम्हारा हाथ?
यदि तुम्हारा उत्तर हाँ है,
तो ही पत्र लिखना...........
क्योंकि,
सुनने की हिम्मत,
मुझमें,
न पहले थी,
न अब है।
अब जो जागी है,
थोड़ी सी हिम्मत,
वो तुम्हारी ही देन है,
कहो........
करोगी मेरा इंतजार,
अगले,
पाँच सालों तक?
तुम्हारे लिए चिर प्रतीक्षारत,
तुम्हारा पागल प्रेमी।”
पत्र पढ़कर,
तो जैसे,
उसके पाँव धरती पर,
टिक ही नहीं रहे थे,
तुरंत जवाब लिखा-
“क्यों इंतजार करना है,
पाँच साल…….
आ जाती हूँ मैं ही,
भेज दो पता।”
अगली बार,
फोन आया था,
फोन पापा ने उठाया था,
वह थी बेफिक्र,
क्योंकि कभी अपना फोन नं. उसे,
दिया ही नहीं था।
पापा ने फोन रख कर कहा था-
“बेटा मुझे पहले ही,
बता दिया होता।
मैंने एक जगह,
कर ली है,
तेरे रिश्ते की बात,
पर,
निर्णय जानना चाहता हूँ तुम्हारा।
“पापा किसका फोन था-”
पूछा था उसने,
इस असमंजस में,
कि...
कहीं उसी का तो नहीं,
पिता ने जब,
कर दी पुष्टि,
तो पूछा था-
“क्या कहा उसने?
“शादी करना चाहता है,
तुझसे,
तेरा जवाब उसे मिल गया है,
मेरा जानना चाहता है।
पहले अपनी बताता हूँ-
मेरी ना है बेटी,
पर,
आखिरी निर्णय,
तुम्हारा है।”
“पर........
ना क्यूँ पिताजी?”
-“बेटी! नहीं भेजना चाहता,
खुद से दूर तुझे मैं।
अगर वो आ जाए,
सदा के लिए वापस,
तो ही हाँ’’ कह सकता हूँ।” 
इतनी आसानी से,
हो जाएगा यह सब,
कहाँ सोचा था उसने………..
“पिताजी,फिर तो कोई समस्या ही नहीं,
आ रहा है वह वापस,
पाँच साल बाद............
पिता ने हाँ कह दी थी।
चलता रहा था,
फोन और पत्रों का,
लंबा सिलसिला।
आखिर......
पाँच नहीं,
साढ़े पाँच साल बाद,
आ ही गया था वह पल,
जब आ गया था वह,
स्वयं चलकर,
उसके दरवाजे पर,
उसके पिता से उसका हाथ माँगने,
पर,
मन में कुछ धुक-धुक सी थी।
पता नहीं क्यूँ,
पिछले छह महीने से,
नहीं लिखा था,
उसकी प्रेमिका ने कोई पत्र...........
ना ही फोन उठाया था।
पर,
ओह!
यह क्या?
उफ्फ...........
भीतर आकर पता चला था,
कि जो पिता,
अपनी बेटी को,
कभी दूर भेजना नहीं चाहते थे.........
वे स्वयं ही जा चुके थे,
सदा के लिए,
बहुत दूर।
अगले ही दिन,
कर लिया था,
दोनों ने,
एक सादे समारोह में विवाह,
चली आई थी वह,
पति के घर।
जब पिता के घर थी,
दिन-रात प्रेमी के,
ख़यालों में डूबी थी,
और अब,
प्रेमी से विवाह के बाद,
दिन-रात पिता की यादें हैं।
नहीं शामिल हो पाये थे,
अपनी एकमात्र संतान के विवाह में वे’,
माँ का साथ तो,
छुटपन में ही छूट चुका था.............
बस!
पिता और पुत्री ही तो थे एक दूसरे की,
पूरी दुनियाँ।
काश!
नहीं गया होता उसका प्रेमी,
पाँच सालों के लिए।  
        
  .