Saturday 9 January 2016

भोली प्रेमिका

ज्यों ही होता,
तुझसे सामना..............
न जाने क्या होता है ?
रह नहीं जाता,
स्वयं खुद पर ही,
अपना नियंत्रण........
और,
तुम्हारी ये नज़रें,
तो बस दिल में,
उतरती ही चली जाती हैं।
छीन लेती हैं मुझसे,
मेरा होश,
घबराहट में,
हड़बड़ा जाती हूँ,
यूँ ही बस !
और फिर उफ !
आ जाती है,
तुम्हारे होठों पर जो मुस्कान,
तो समझ नहीं आता,
क्या प्रतिक्रिया दूँ,
क्योंकि,
फिर ठीक से मुस्कुराया भी नहीं जाता मुझसे,
अपने भावों को छुपाने की कोशिश में,
और इन सबके बीच,
भाव हैं कि,
प्रकट हो ही जाते हैं,
और तुम पहले मुस्कुराकर,
फिर ज़ोर से हंस पड़ते हो,
शरमाकर ढूँढती हूँ,
छुपने की जगह,
और लग जाती हूँ,
तुम्हारे ही सीने से।