जज़्बात कहाँ समझे जाते हैं,
इसकी तो त्रासदी ही,
यही है।
समझाने की कोशिश,
की जाती है,
बार-बार।
हर बार,
इस उम्मीद के साथ,
कि शायद इस बार,
समझ लिया जायेगा उसे।
उम्मीद की अधिकता में,
यह भी सोच लिया जाता है,
कि ठीक से समझ लिया जायेगा।
पानी फिरता बारम्बार,
इन उम्मीदों पर,
इन कोशिशों का परिणाम,
प्रायः शून्य ही होता है।
जज़्बाती लोगों का हश्र भी,
होता है,
कुछ - कुछ,
ऐसा ही।
वे पागल, जिद्दी, बेवकूफ,
और कभी - कभी,
सनकी करार दिए जाते हैं।