Monday 3 April 2017

कोमलांगी

अपने कोमल हाथों से,
कितने काम...
निबटाती हो तुम!
आश्चर्य होता है मुझे,
कहाँ छुपा रखी है इतनी ऊर्जा?
घंटों जूझा था..
जिस पहेली से मैं,
तुमने एक पल में सुलझा दिया।
गणित का वह कठिन सवाल,
तुमने हँसते - हँसते,
हल कर दिया।
उस दिन.....
गोद में बच्चा लिए जब,
बस में चढ़ रही थी तुम,
मैं डर रहा था,
कि कहीं तुम,
गिर न जाओ।
वो तो बाद में,
मेरी नज़र पड़ी....
तुम्हारी पीठ पर,
एक भारी बैग भी टंगा था।
सच्ची....
जिन लोगों ने कहा था,
स्त्री अबला है,
ऐसा नहीं है,
उन्होंने नहीं देखा था तुम्हें,
बल्कि देख कर अनदेखा किया था।

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