सातवाँ आसमान
गुड़हल की लाली
गुलाब की कोमलता
अल्हड़ किशोरी
काया जैसे लता
संधि-वयस पर खड़ी
बड़ी-बड़ी आँखों में
बड़े-बड़े स्वप्न लिए
खोलती है पँख
छूने को आसमान
माँ का कलेजा
पीपल के पत्ते सा कंपित
पिता का हृदय
क्षण-क्षण आशंकित
बिटिया की चाहतें
ज़माने की दुश्वारियां
संभलकर बिटिया
ध्यान रहे मेरी बच्ची
सड़क पर आकर उसका
डर-डर कर चलना
फूँक-फूँककर
कदम रखना
जब तक न लौटे
मातापिता की
टिकी रहती हैं
घड़ी पर निगाहें
एक एक दिन
कटता है
सौ-सौ प्रार्थनाओं में
डर है
मन के भीतर
बहुत डर है
पर डर के मारे
बिटिया के
पँख न कतरेंगे
उसे सिखाएँगे
सामना करना
उड़ान भरना
उड़कर छू लेना
सातवें आसमान को
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