Tuesday 4 July 2023

भूमिका बदलि क'

 चलू कनि

भूमिका बदलि क

देखल जाय

दर्शक केँ

नर्तक-गायक

प्रदर्शक, वक्ता

आ प्रदर्शक

लोकनिकेँ

के श्रोता-दर्शक

बनाओल जाय

चलू आई

फैंसी कारमे 

पैरे चलनाहर

लोककेँ

बैसाओल जाय

चलू आई

खाली जेबीमे

भरती जेबी

सँ किछु

निकालि क’

राखल जाय

चलू ने आई

कनि भेदभाव

मेटा क’

देखल जाय

चलू ने आई

कनि अन्हार

घर सभमे

दीप लेसल

जाय

चलू आई कनि

भरल खजाना

बिलहि देल जाय

चलू आई कनि

एकरत्ती

इजोरिया

अन्हरिया केँ सेहो

परसल जाय

चलू ने आई

सभटा विभेद

सँ उठि क’

अगबे मनुक्ख केँ

देखल जाय।



Monday 3 July 2023

दू रंगक लोक

 दू रंगक लोक 


मोटामोटी दू रंगक

लोक देखलौं

लिबनाहर आ लिबोउनहार

टहलुक आ अरहौनहार

बौक आ बजनिहार

कोरिया कातर

आ बिलहौनिहार

सेवा केनहार

आ करौनिहार

भितरघुन्ना आ कि फंचार


उसठ दुनिया

 उसठ दुनिया


झमा क’ खसल विचार

फाटि क’

ओदरि गेल विवेक

लोकमे सँ जेना

लोके हेरा गेल

बरु दूधमे सँ

नेन बिला गेल

कुसियार सँ

बहरा गेल

मिट्ठ रस

मिरचाई सँ

चोरा लेलक क्यो

सुरसुरी

मर! ई दुनिया

एतेक उसठ आ

अनोन किएक

भ’ गेलै।



रीढ़क हड्डी


रीढ़क हड्डी

जहन रीढ़क हड्डीए 
तोड़ि लेब
त कुर्सी 
लइए क’
की करब
सोझ भ’ बैसल त’
हैत नहि
भलहुक
धब सिन
कुर्सी पर
खसि पडब अनेरे
गोबरक
चोत जेकाँ।

काछुए रहितौं ने

 काछुए रहितौं ने


खोलेमे रहबाक छल

त काछुए रहितौंने

ज मुड़ी बालुएमे 

ढुकौन रखबाक’

छल त’

शुतुरमुरगे होइतौं ने

ज सीखबाक छल

ड्सनाइए त’

गहुमने होइतौं ने

ज बिन्हब अपन

प्रकृति बनेबाक छल

त बिरह्निए हेबाक

छल ने

ज दूरि करबाक

छल अनकर

परसल थारी त’

गन्हकिए होइतौं ने

ज हेबाके अछि किछु

त किएक नहि भ’जाइ

गबैत कोयली, उमकैत नदी

घनगर वृक्ष वा

गमकैत फूल।






बिसरि जाइ छी

हमरा लोकनि

अपन कर्तव्य

मोन रहि जाइत

अछि छूछे 

अधिकार किए?

किए बिसरा जाइत

अछि अनेरे

अपन मनुक्ख

भेनाई?



Sunday 2 July 2023

मनुक्खक इंद्रजाल

 बाघक चांगुर मे

हरिण वा लोक

एक्के रंग

नचार

ओतय कहाँ छै

बचबाक लेल

कोनो उपचार

बिलाइक

चांगुरमे मूस

कनिकबे कालमे

अपन अंत जानि

गोहराबय लागल

अछि अपन

देवता पितर

ताहि सँ कि

बिलाइक हृदयमे

मात्सर्य उमड़ि

जाइछ?

बिलाई मूसक

देहक सभटा

मासु खा क’

ओकर रोइयाँ सँ छारल चाम

कोठीक गोरा तरमे

छोड़ि दोसर

मूसकेँ पकड़बाक लेल

धपायल रहैत छै

मनुक्खे निर्माण

केने छलै

बेर-बेगरताक

चीज-बौस केर

बिक्री-विनिमय

लेल बजारक

मुदा की द’क’

की लेबाक छल

तेकर अवगति

नहि रहलै

ओ त’ जानिए

नहि सकलै

जे कखन ओ

अपनहि

बाजार लेल

एकटा साधन

बनि क’

रहि गेलै

बजार एक्के

बेरमे हजारक

हजार लोककेँ चांगुरमे

झपटि क’

तरहत्थी पर

तमाकुल जेकाँ

चुना क’

कल्ला तर

दाबिक चलि

देलक अछि

फेर सँ

नव-नव

शिकारकेँ

फुसला-पोलहा क

ओकर शोणित

पीबाक लेल

मनुक्ख लेल

प्रकृति देने छलै

सभ किछु

धरि मनुक्ख केँ

संतोख कहाँ

अपन विकासक

नाम पर

कटैत रहल

ओहि गाछक

जड़ि जकर

टिकासन पर

ओकर चास बास छलै

मनुक्ख अपने

बनाओल

इंद्रजालमे

ओझरा क

औना रहल छै।


दुत्कारे जाने का दर्द

 दुत्कारे जाने का दर्द

सहा जाना

कठिन था

तो उसने 

पलटकर

दर्द को ही

दुतकारा था

दर्द ने उसे

दोनों हथेलियों पर

उठा लिया

वह उपेक्षा से

घबराई थी

पर उसकी मार ने

उसे कंधों

पर बैठाकर

उसकी दृष्टि को

दूर तक

स्पष्ट कर दिया

वह अपमान से

टूटी थी

पर अपमान ने

उसे समझाया

दूसरों की

गलती में भला

तुम्हारा क्या दोष

वह चोट खाकर

तिलमिलाई थी

पर चोट धीरे-धीरे

उसका पथ-प्रदर्शक

बन गया


नेना और मम्मी

 नेना और मम्मी


आपको गर्भमें 

धारण कर,

पढ़ रही थी मैं…

किताबें

लिख रही थी 

लेख और डेज़रटेशन

फिर

दोनों हथेलियों में

आपको थाम 

आपका

चेहरा पढ़ने लगी

लिखने लगी

लोरियां

जो मेरे होठों पर

आतीं कि

कण्ठ सुरीली

तान उठाने लगती

आपके 

नन्हें गुलाबी होंठ

मुस्कुराते से 

शब्दों को पकड़ने

को आतुर 

कि क्षणांश में

रोनी सूरत

बना लेते आप

आपकी दादी

कहती थीं 

हर बच्चा

ऐसे ही रोता-हँसता है

इस वक्त वह

भगवान से बातें

करता है

आपकी नानी

कहतीं-

मेरी अल्हड़ बेटी 

शिशु पकड़ना भी

नहीं आता

ऐसे लिए आ रही है

बाबू को

जैसे आरती की थाली

धीरे-धीरे

खेल-खेलमें

बदलने लगे हम

भूमिकाएँ

आप मम्मी

और मैं नेना बन

पू-झा और

लुका-छिपी

खूब खेलने लगे

बैठना भी

सीख गए आप

किताबों के बीच

पूछ-पूछकर

अक्षर भी

पहचानने लगे

तबसे तो अपना 

लिखने-पढ़ने

सीखने-सिखाने

का दिलचस्प क्रम

चल निकला

मैं ने आपको

अक्षर सिखाया 

और आपने मुझे

कम्प्यूटर ऑन

करने से 

टाइपिंग तक

आपने

इसी तिथि को

दिया था मुझे

माँ बनने का गौरव

मुझे नहीं पता

मैं अच्छी

माँ बन पाई 

कि नहीं

पर आप

बहुत अच्छे

बच्चे हो

खरे सोने से लोचदार

सच्चे हीरे से

चमकदार

और स्वच्छ जल

की तरह पारदर्शी।








व्यापार करने लगे हैं

 लोग पहले प्यार

करते थे

अब व्यापार

करने लगे हैं

व्यापार का होता

एक ही उसूल

मुनाफा आता रहे

बना रहे मूल

लाभ के लिए अब

एक का दो

दो का चार करने

लगे हैं

व्यापार में

एक एक मिनट

कीमती है

सामान के साथ

बोतल डब्बा भी

कीमती है

लाभ के लिए लोग

बातें घुमावदार करने लगे हैं


सूनि लिय

Friday 30 June 2023

अक्सर

 अक्सर बड़ी जगहों पर छोटी

और छोटी जगहों पर

बड़ी सोच वाले लोग मिले

अक्सर बड़े मकानों में पुतले

और झोंपड़ियों में इंसान मिले

अक्सर अपनों से उपेक्षा

अनजानों से अपेक्षा मिली

अक्सर पैसेवाले स्वार्थी और

खाली जेबवाले उदार मिले

अक्सर प्यार का दावा करने वाले फरेबी

प्यार छुपाने वाले प्रेमी निकले

अक्सर जिनसे उम्मीदें थीं उनसे धोखा

जिनसे नहीं थीं उनसे प्यार भरी सौगात मिली

अक्सर हँसते रहने वाले वास्तव में दुखी

और रोते रहने वाले भीतर से खुश निकले।

अक्सर बुढ़ापे में सच्चे प्रेम को परवान चढ़ते

और जवानी में झूठे वायदों को

सजते देखा गया

अक्सर डॉक्टर मरीज से ज्यादा

घायल पाया गया

अक्सर दवा से ज्यादा दुआ

काम आई

अक्सर वारदात को

दिन दहाड़े अंजाम दिया गया

अक्सर दावतों से लोग भूखे लौटे

अक्सर बचे हुए भोजन ने अतिथियों को तृप्त किया।


आदत

 आदत

चुप रहने की

आदत ने उसे

सिंहासन तक

पहुँचा दिया

बोल पड़ने की

आदत ने मुझे

बेघर कर दिया।


Thursday 23 March 2023

जीवन एक लंबी कविता

 जीवन एक लम्बी कविता


जब …

मेरी

अनदेखी होती है

मैं

काम की

गति और

गुणवत्ता बढ़ाने

के लिए

दिन-रात

एक कर देती हूँ

जब..

प्रशंसा

होती है

मैं कानों को

बंद कर लेती हूँ

जब..

निंदा होती है

मैं त्रुटि-सुधार

के लिए

साधना करती हूँ

जब…

मेरे या 

किसी अन्य के साथ

अन्याय होता है

मैं और

प्रतिबद्ध हो

उठती हूँ

न्याय के प्रति

जब...

मेरी तरफ

बढ़ता है

मित्रता का हाथ

मैं उसे

चहककर

थाम लेती हूँ

जब...

मिलता है प्रेम

भावविभोर

हो जाती हूँ

जब...

मुझपर भरोसा

किया जाता है

मैं नतमस्तक

होकर

विनम्रता

और जिम्मेदारी

के भाव से

भर जाती हूँ

एक कवि

होने का

कर्तव्य

निभाऊंगी मैं

अपनी आखिरी

साँस तक

इस जीवन

को मैं

एक लम्बी कविता

की तरह

पढ़ने-समझने

का प्रयत्न

करती हूँ

कभी नहीं

ऊबता मेरा मन

इसमें डूबने से

क्योंकि कविता

की व्याख्या

अनन्त होती है।



Thursday 5 January 2023

सच्ची बात

 .सच्ची बात


हाँ सच्ची बात

कह दी जाएगी

विश्वास कौन करेगा

पीड़ित अपना पक्ष

रख तो दे

उसपर विचार

कौन करेगा

गरीबों का मसीहा

कहलाते हैं जो

उनके नौकर को

पगार कौन देगा

मंच पर देते भाषण

स्त्री विमर्श पर

देर रात पीटते हैं

जूतों से पत्नी को

घरेलू हिंसा रोकने को

बेल कौन बजाएगा


सातवां आसमान

 सातवाँ आसमान

गुड़हल की लाली

गुलाब की कोमलता

अल्हड़ किशोरी

काया जैसे लता

संधि-वयस पर खड़ी

बड़ी-बड़ी आँखों में

बड़े-बड़े स्वप्न लिए

खोलती है पँख

छूने को आसमान

माँ का कलेजा

पीपल के पत्ते सा कंपित

पिता का हृदय

क्षण-क्षण आशंकित

बिटिया की चाहतें

ज़माने की दुश्वारियां 

संभलकर बिटिया

ध्यान रहे मेरी बच्ची

सड़क पर आकर उसका

डर-डर कर चलना

फूँक-फूँककर

कदम रखना

जब तक न लौटे

मातापिता की

टिकी रहती हैं

घड़ी पर निगाहें

एक एक दिन

कटता है 

सौ-सौ प्रार्थनाओं में

डर है

मन के भीतर

बहुत डर है

पर डर के मारे

बिटिया के

पँख न कतरेंगे

उसे सिखाएँगे

सामना करना

उड़ान भरना

उड़कर छू लेना

सातवें आसमान को


Monday 2 January 2023

अनारकली

 अनारकली


उधड़ती जा रही

कुर्ती की किनारी

खुलती हेम

निकलते धागे वाले

दामन से

रिसते सूत संभालती

काम पर निकलती 

अनारकली

सकुचा जाती है

सामने से

अनारकली सूट में

आती बड़ी कोठी की

मालकिन को देख

कहने को होती है

अब तो दिलवा दो न भाभी

मुझे भी एक

नया अनारकली सूट

हाँ यह बात

दीगर है कि

मेरे तन पर

अभी भी

आपका ही दिया सूट है

-"आ गई अनारकली

जा जल्दी जा

अम्माँ को चाय देकर

साहब का ब्रेकफास्ट

लगा देना

लंच में

मेथी मटर की सब्जी

और आलू का पराठा

दे देना,

हाँ दूध चढ़ा है गैस पर

वह भी देख लेना

मुन्ना सोया है अभी

तब तक

सारे काम निबटा ले

अभी फटाफट

अरे तू है तो

मेरा घर- परिवार

चल रहा है"

होठों में उलझ गए शब्द

भाभी एक नया

अनारकली सूट

बिल्कुल आप जैसा

कार के दरवाजे बंद

होने की ध्वनि में

छुप गई

उसकी आवाज

कि चौरसिया पान कॉर्नर पर

उससे भी

ऊँची ध्वनि में

बज उठा-

अनारकली डिस्को चली

पोंछा लगाती

अनारकली

सपने में खो

गई है

हाँ वह है

अपने सलीम सँग

बिल्कुल नए

अनारकली सूट में।


माँ भी किसी का बच्चा है

 माँ भी किसी का बच्चा है


महिमा और

बखान की परतें

उघाड़ कर

कभी देखना

माँ भी

एक इंसान है

उसे भी

दर्द होता है

थकती है वह भी

उसका भी

मन करता है

कोई पूछ ले

एक बार हाल

वो शिकायत

नहीं करती है

उफ्फ तक

भी नहीं बोलती

बच्चों की पसंद का

ध्यान रखती

अपनी पसंद

भूल जाती है

माँ से मिले 

सुखों को 

प्राप्त करते हुए

क्या हम

याद रख पाते हैं

कि

माँ भी

किसी का बच्चा है।