नानी कहती हैं
नानी कहती हैं
बेटियों के लिए
ज़माना
कभी नहीं
बदलता
उनकी नानी
कहती थीं
बेटियों को
हमेशा रखा जाता है
डर के साये में
अम्माँ कहती हैं
बेटियों को
कभी नहीं मिलती
जी भर
जीने की फुरसत
मैं पूछती है
उन सबसे
आखिर
आपलोग
कब तक
चलती रहना
चाहती हैं
उसी लीक पर
कब तक
बनी रहना
चाहती हैं
लकीर का
फ़कीर
जरा गौर
से देखिए
मेरी आँखों में
समुद्र की गहराई
और
आकाश की
ऊँचाई
एक साथ
समा सकती हैं
सिर्फ और सिर्फ
बेटियों की
आँखों में
खोलिए न
अब तो
अपनी पलकें
खोलिए न।
सर्वाधिकार@ बिभा कुमारी
दूसरी बेटी
जब अम्माँ
मुस्कुराई थी
बिटिया
खिलखिलाई थी
माँ के
गर्भ में
उसकी मुट्ठियों
की पकड़
थोड़ी और
मजबूत हो
गई थी
उसके मन
में जगी थी
आशा
उसे अच्छा
परिवार
मिला है
उसकी अम्माँ
पर दबाव
नहीं है
बेटे की ही
अम्माँ बनने का
बिटिया फूली
नहीं समाती
अम्माँ हर वक्त
खील-मखाना
हुई जाती है
पर वह
क्या सुन
रही है आज
बाबू कह
रहे हैं
हाँ वही
बाबू
जिन्होंने
थोड़ी देर पहले ही
अम्माँ को
खिलाया था
रसगुल्ला
बड़े प्यार से
अबकी तो
पहलौटी है
जो आए
सब ठीक
पर दूसरी बेटी
इस घर में
किसी कीमत
पर नहीं
आएगी
बिटिया की
जान को
कोई खतरा
नहीं
पर उसका
नन्हा दिल
तेजी से
धड़कने लगा है
वह अंदर से
पुकार रही है
-“अम्माँ बचा लो
मुझे बहुत
डर लग रहा है।”
अब बिटिया
सहमी रहती है
दिन-रात
अम्माँ भी
मुस्कुराना
भूल गई है।
सर्वाधिकार@बिभा कुमारी
बोलिए न
बेटियों के लिए
अच्छे शब्द
बोलिए न।
प्यारी बेटियाँ
बेटियाँ जब रोती हैं
उनका
कुछ कर दिखाने का जज़्बा
थोड़ा और पक्का
हो जाता है
उनके इरादों
की कंक्रीट-ढलाई
की जैसे
तराई हो
जाती है
बेटियाँ जब
सहती हैं
रोटी-पानी
कपड़े-लत्ते का
अभाव
वह मन ही मन
लेती है संकल्प
आर्थिक रूप से
आत्मनिर्भर होने
और
सक्षम बन
दूसरों की
सहायता करने का
बेटियाँ जब
खाती हैं
तन-मन
पर चोट
वो बना
लेती है
अपना स्वभाव
मरहम जैसा
बेटियाँ जब-जब
बनती हैं
शिकार
अपने टूटे
मनोबल को
जोड़ती हैं
फिर से
धीरे-धीरे
वास्तव में
बेटियाँ ही
सजाती हैं
इस संसार को
आखिर उनके
बिना
कलियों
फूलों, रंगों
और चाँद को
किसी की
उपमा भी
तो नहीं दी जा सकती।
मेरी मुन्नी
मेरी मुन्नी
घबराना नहीं
जब तक
तेरे हाथों में
कलम है
अपना हौसला
बुलंद रखना
अभी तुम्हारे
डैनों को
नापनी है
आकाश की
ऊँचाई
अभी तुम्हें
अपने नाम की
तख़्ती
सबसे ऊँची
कांटी में
लटकानी है
क्या फर्क
पड़ता है
जो औरों को
तुम्हारी कद्र नहीं
अभी तो
तुम्हारी अपनी
नज़रों में
पहचान होनी
बाकी है
अभी करना है
मायके-ससुराल,
आस-पड़ोस
गाँव-जिला,
राज्य और देश
का नाम रौशन
गर्व करना है
तुमपर
अभी तो
उन सबको
जो आज
पहचानने से
भी इंकार
कर रहे हैं
कल को
कहते
फिरेंगे
अरे मेरी
बिटिया है
अपनी भतीजी
है
भांजी है
अरे मेरे ही
गाँव की है
तुम्हें बदलना
है वर्तमान
निखारना
है भविष्य
और रचना है
इतिहास
जो कहते हैं
बिटिया बोझ है
उन्हें
बताना है कि
बेटी से
मजबूत
अवलंब
शायद ही
कोई दूसरा
होता है
जिन्हें लगता है
मातृत्व
कैरियर में
बाधा है
उनको
समझाना है कि
मुन्नी तो
चमकेगी ही
फ़लक पर
अपनी मुन्नी
को भी
बनाएगी
चमकता सितारा
मुन्नी हारेगी
नहीं
मुसीबतों से
लड़ेगी
बढ़ेगी स्वयं
औरों को भी
आगे बढ़ाएगी।
सर्वाधिकार@बिभा कुमारी
उसका बोलना
बेटी से
बड़ी है
खानदान की
प्रतिष्ठा
उसकी खुशियों
से ऊपर है
परिवार की
ऊँची नाक
बात-बात
पर घट जाती है
प्रतिष्ठा
मिट जाती है इज्जत
कटकर गिर
जाती है नाक
उछल जाती है
हवा में पगड़ी
गोया बेटी
इंसान नहीं
कोई गुड़िया है
जो सजाई
जाएगी
सिर्फ और सिर्फ
घर की शोभा
और प्रतिष्ठा
में चार-चाँद लगाने को
बारंबार एक ही
ताकीद
बोलने वाली
बेटियाँ
माँ-बाप की
जान लेकर
रहती हैं
इतिहास गवाह
है
इज्जत की
खातिर
जान लेने और
देने के किस्से
और फिर
सदमे से
जान जाने
की लंबी
दास्तानें
गर्व भरे स्वर में
सुनाई जाती
रही हैं
वो मुँह खोलेगी
तो बहुत बड़ा
ज़ुल्म
समझो
अँधेड़ ही
हो जाएगा
बेटी और
बोलेगी?
उसके सिले होंठ
ही उसकी
शोभा हैं
वो बेजान
मूरत नहीं
इंसान है
ये कोई
सोचता ही नहीं।
होश संभालते ही
खानदान की
प्रतिष्ठा की
भारी गठरी
उसके सिर पर
डाल दी गई
उसके सिर
और गर्दन की
क्षमता को
समझे बिना
भारी सिर
झुकी गर्दन सँग
सिले होठों पर
हल्की मुस्कान
लिए फिरती
है वह
प्रश्न मन
में दबे
खदबदाते हैं
वह भी
बोलना चाहती है
बताना चाहती है
उसे भी दर्द
होता है
मान-अपमान
का बोध होता है
पूछना चाहती है
कि उसके हर
निर्णय पर
खानदान की प्रतिष्ठा
क्यों डगमगा
जाती है
जबकि न
वह इतनी
कमजोर है
और न ही
खानदान की प्रतिष्ठा?
सर्वाधिकार@ बिभा कुमारी