Thursday 12 August 2021

प्यारी बेटियाँ

 प्यारी बेटियाँ

 

बेटियाँ जब रोती हैं

उनका 

कुछ कर दिखाने का जज़्बा

थोड़ा और पक्का

हो जाता है

उनके इरादों

की कंक्रीट-ढलाई

की जैसे

तराई हो

जाती है

बेटियाँ जब

सहती हैं

रोटी-पानी

कपड़े-लत्ते का

अभाव

वह मन ही मन

लेती है संकल्प

आर्थिक रूप से 

आत्मनिर्भर होने

और

सक्षम बन

दूसरों की

सहायता करने का

बेटियाँ जब

खाती हैं

तन-मन

पर चोट

वो बना

लेती है

अपना स्वभाव

मरहम जैसा

बेटियाँ जब-जब

बनती हैं

शिकार

अपने टूटे

मनोबल को

जोड़ती हैं

फिर से

धीरे-धीरे

वास्तव में 

बेटियाँ ही

सजाती हैं

इस संसार को

आखिर उनके

बिना

कलियों

फूलों, रंगों

और चाँद को

किसी की

उपमा भी

तो नहीं दी जा सकती।



No comments:

Post a Comment