प्यारी बेटियाँ
बेटियाँ जब रोती हैं
उनका
कुछ कर दिखाने का जज़्बा
थोड़ा और पक्का
हो जाता है
उनके इरादों
की कंक्रीट-ढलाई
की जैसे
तराई हो
जाती है
बेटियाँ जब
सहती हैं
रोटी-पानी
कपड़े-लत्ते का
अभाव
वह मन ही मन
लेती है संकल्प
आर्थिक रूप से
आत्मनिर्भर होने
और
सक्षम बन
दूसरों की
सहायता करने का
बेटियाँ जब
खाती हैं
तन-मन
पर चोट
वो बना
लेती है
अपना स्वभाव
मरहम जैसा
बेटियाँ जब-जब
बनती हैं
शिकार
अपने टूटे
मनोबल को
जोड़ती हैं
फिर से
धीरे-धीरे
वास्तव में
बेटियाँ ही
सजाती हैं
इस संसार को
आखिर उनके
बिना
कलियों
फूलों, रंगों
और चाँद को
किसी की
उपमा भी
तो नहीं दी जा सकती।
No comments:
Post a Comment