उसका बोलना
बेटी से
बड़ी है
खानदान की
प्रतिष्ठा
उसकी खुशियों
से ऊपर है
परिवार की
ऊँची नाक
बात-बात
पर घट जाती है
प्रतिष्ठा
मिट जाती है इज्जत
कटकर गिर
जाती है नाक
उछल जाती है
हवा में पगड़ी
गोया बेटी
इंसान नहीं
कोई गुड़िया है
जो सजाई
जाएगी
सिर्फ और सिर्फ
घर की शोभा
और प्रतिष्ठा
में चार-चाँद लगाने को
बारंबार एक ही
ताकीद
बोलने वाली
बेटियाँ
माँ-बाप की
जान लेकर
रहती हैं
इतिहास गवाह
है
इज्जत की
खातिर
जान लेने और
देने के किस्से
और फिर
सदमे से
जान जाने
की लंबी
दास्तानें
गर्व भरे स्वर में
सुनाई जाती
रही हैं
वो मुँह खोलेगी
तो बहुत बड़ा
ज़ुल्म
समझो
अँधेड़ ही
हो जाएगा
बेटी और
बोलेगी?
उसके सिले होंठ
ही उसकी
शोभा हैं
वो बेजान
मूरत नहीं
इंसान है
ये कोई
सोचता ही नहीं।
होश संभालते ही
खानदान की
प्रतिष्ठा की
भारी गठरी
उसके सिर पर
डाल दी गई
उसके सिर
और गर्दन की
क्षमता को
समझे बिना
भारी सिर
झुकी गर्दन सँग
सिले होठों पर
हल्की मुस्कान
लिए फिरती
है वह
प्रश्न मन
में दबे
खदबदाते हैं
वह भी
बोलना चाहती है
बताना चाहती है
उसे भी दर्द
होता है
मान-अपमान
का बोध होता है
पूछना चाहती है
कि उसके हर
निर्णय पर
खानदान की प्रतिष्ठा
क्यों डगमगा
जाती है
जबकि न
वह इतनी
कमजोर है
और न ही
खानदान की प्रतिष्ठा?
सर्वाधिकार@ बिभा कुमारी
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