दूसरी बेटी
जब अम्माँ
मुस्कुराई थी
बिटिया
खिलखिलाई थी
माँ के
गर्भ में
उसकी मुट्ठियों
की पकड़
थोड़ी और
मजबूत हो
गई थी
उसके मन
में जगी थी
आशा
उसे अच्छा
परिवार
मिला है
उसकी अम्माँ
पर दबाव
नहीं है
बेटे की ही
अम्माँ बनने का
बिटिया फूली
नहीं समाती
अम्माँ हर वक्त
खील-मखाना
हुई जाती है
पर वह
क्या सुन
रही है आज
बाबू कह
रहे हैं
हाँ वही
बाबू
जिन्होंने
थोड़ी देर पहले ही
अम्माँ को
खिलाया था
रसगुल्ला
बड़े प्यार से
अबकी तो
पहलौटी है
जो आए
सब ठीक
पर दूसरी बेटी
इस घर में
किसी कीमत
पर नहीं
आएगी
बिटिया की
जान को
कोई खतरा
नहीं
पर उसका
नन्हा दिल
तेजी से
धड़कने लगा है
वह अंदर से
पुकार रही है
-“अम्माँ बचा लो
मुझे बहुत
डर लग रहा है।”
अब बिटिया
सहमी रहती है
दिन-रात
अम्माँ भी
मुस्कुराना
भूल गई है।
सर्वाधिकार@बिभा कुमारी
बोलिए न
बेटियों के लिए
अच्छे शब्द
बोलिए न।
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