Thursday 12 August 2021

नानी कहती हैं

 नानी कहती हैं


नानी कहती हैं

बेटियों के लिए

ज़माना

कभी नहीं

बदलता

उनकी नानी

कहती थीं

बेटियों को

हमेशा रखा जाता है

डर के साये में

अम्माँ कहती हैं

बेटियों को

कभी नहीं मिलती

जी भर

जीने की फुरसत

मैं पूछती है

उन सबसे

आखिर 

आपलोग

कब तक

चलती रहना

चाहती हैं

उसी लीक पर

कब तक

बनी रहना

चाहती हैं

लकीर का

फ़कीर

जरा गौर

से देखिए

मेरी आँखों में

समुद्र की गहराई

और

आकाश की

ऊँचाई

एक साथ

समा सकती हैं

सिर्फ और सिर्फ

बेटियों की

आँखों में

खोलिए न

अब तो

अपनी पलकें

खोलिए न।


सर्वाधिकार@ बिभा कुमारी

दूसरी बेटी

 दूसरी बेटी


जब अम्माँ

मुस्कुराई थी

बिटिया

खिलखिलाई थी

माँ के

गर्भ में

उसकी मुट्ठियों

की पकड़

थोड़ी और

मजबूत हो

गई थी

उसके मन

में जगी थी

आशा

उसे अच्छा

परिवार

मिला है

उसकी अम्माँ

पर दबाव

नहीं है

बेटे की ही

अम्माँ बनने का

बिटिया फूली

नहीं समाती

अम्माँ हर वक्त

खील-मखाना

हुई जाती है

पर वह

क्या सुन

रही है आज

बाबू कह

रहे हैं

हाँ वही

बाबू

जिन्होंने 

थोड़ी देर पहले ही

अम्माँ को

खिलाया था

रसगुल्ला

बड़े प्यार से

अबकी तो

पहलौटी है

जो आए

सब ठीक

पर दूसरी बेटी

इस घर में

किसी कीमत

पर नहीं

आएगी

बिटिया की

जान को

कोई खतरा

नहीं

पर उसका

नन्हा दिल

तेजी से

धड़कने लगा है

वह अंदर से

पुकार रही है

-“अम्माँ बचा लो

मुझे बहुत

डर लग रहा है।”

अब बिटिया

सहमी रहती है

दिन-रात

अम्माँ भी

मुस्कुराना

भूल गई है।


सर्वाधिकार@बिभा कुमारी



बोलिए न

बेटियों के लिए

अच्छे शब्द

बोलिए न।


प्यारी बेटियाँ

 प्यारी बेटियाँ

 

बेटियाँ जब रोती हैं

उनका 

कुछ कर दिखाने का जज़्बा

थोड़ा और पक्का

हो जाता है

उनके इरादों

की कंक्रीट-ढलाई

की जैसे

तराई हो

जाती है

बेटियाँ जब

सहती हैं

रोटी-पानी

कपड़े-लत्ते का

अभाव

वह मन ही मन

लेती है संकल्प

आर्थिक रूप से 

आत्मनिर्भर होने

और

सक्षम बन

दूसरों की

सहायता करने का

बेटियाँ जब

खाती हैं

तन-मन

पर चोट

वो बना

लेती है

अपना स्वभाव

मरहम जैसा

बेटियाँ जब-जब

बनती हैं

शिकार

अपने टूटे

मनोबल को

जोड़ती हैं

फिर से

धीरे-धीरे

वास्तव में 

बेटियाँ ही

सजाती हैं

इस संसार को

आखिर उनके

बिना

कलियों

फूलों, रंगों

और चाँद को

किसी की

उपमा भी

तो नहीं दी जा सकती।



मेरी मुन्नी

 मेरी मुन्नी


मेरी मुन्नी

घबराना नहीं

जब तक

तेरे हाथों में

कलम है

अपना हौसला

बुलंद रखना

अभी तुम्हारे

डैनों को

नापनी है

आकाश की

ऊँचाई

अभी तुम्हें

अपने नाम की

तख़्ती

सबसे ऊँची

कांटी में

लटकानी है

क्या फर्क

पड़ता है

जो औरों को

तुम्हारी कद्र नहीं

अभी तो

तुम्हारी अपनी

नज़रों में

पहचान होनी

बाकी है

अभी करना है

मायके-ससुराल,

आस-पड़ोस

गाँव-जिला,

राज्य और देश 

का नाम रौशन

गर्व करना है

तुमपर

अभी तो

उन सबको

जो आज

पहचानने से

भी इंकार

कर रहे हैं

कल को

कहते

फिरेंगे

अरे मेरी

बिटिया है

अपनी भतीजी

है

भांजी है

अरे मेरे ही

गाँव की है

तुम्हें बदलना

है वर्तमान

निखारना

है भविष्य

और रचना है

इतिहास

जो कहते हैं

बिटिया बोझ है

उन्हें

बताना है कि

बेटी से

मजबूत

अवलंब

शायद ही

कोई दूसरा

होता है

जिन्हें लगता है

मातृत्व

कैरियर में

बाधा है

उनको 

समझाना है कि

मुन्नी तो

चमकेगी ही

फ़लक पर

अपनी मुन्नी 

को भी

बनाएगी

चमकता सितारा

मुन्नी हारेगी

नहीं

मुसीबतों से

लड़ेगी

बढ़ेगी स्वयं

औरों को भी

आगे बढ़ाएगी।


सर्वाधिकार@बिभा कुमारी

उसका बोलना

 उसका बोलना


बेटी से

बड़ी है

खानदान की

प्रतिष्ठा

उसकी खुशियों

से ऊपर है

परिवार की

ऊँची नाक

बात-बात

पर घट जाती है

प्रतिष्ठा

मिट जाती है इज्जत

कटकर गिर

जाती है नाक

उछल जाती है

हवा में पगड़ी

गोया बेटी

इंसान नहीं

कोई गुड़िया है

जो सजाई

जाएगी

सिर्फ और सिर्फ

घर की शोभा

और प्रतिष्ठा

में चार-चाँद लगाने को

बारंबार एक ही

ताकीद

बोलने वाली

बेटियाँ

माँ-बाप की

जान लेकर

रहती हैं

इतिहास गवाह

है

इज्जत की

खातिर 

जान लेने और

देने के किस्से

और फिर

सदमे से 

जान जाने

की लंबी

दास्तानें

गर्व भरे स्वर में

सुनाई जाती

रही हैं

वो मुँह खोलेगी

तो बहुत बड़ा

ज़ुल्म 

समझो

अँधेड़ ही

हो जाएगा

बेटी और

बोलेगी?

उसके सिले होंठ

ही उसकी

शोभा हैं

वो बेजान

मूरत नहीं

इंसान है

ये कोई 

सोचता ही नहीं।

होश संभालते ही

खानदान की

प्रतिष्ठा की

भारी गठरी

उसके सिर पर

डाल दी गई

उसके सिर

और गर्दन की

क्षमता को

समझे बिना

भारी सिर

झुकी गर्दन सँग

सिले होठों पर

हल्की मुस्कान

लिए फिरती 

है वह

प्रश्न मन

में दबे

खदबदाते हैं

वह भी

बोलना चाहती है

बताना चाहती है

उसे भी दर्द

होता है

मान-अपमान

का बोध होता है

पूछना चाहती है

कि उसके हर

निर्णय पर

खानदान की प्रतिष्ठा

क्यों डगमगा

जाती है

जबकि न

वह इतनी

कमजोर है

और न ही 

खानदान की प्रतिष्ठा?


सर्वाधिकार@ बिभा कुमारी

Tuesday 1 June 2021

बच्चों के हाथों में कलम


अपने पढ़ाए बच्चे

जब बड़े हो जाते हैं

खुद अपने पैरों पर

खड़े हो जाते हैं

गौरवान्वित करते हैं हमें

हमारे अरमानों को

पंख लगा देते हैं

सपनों में सुंदर रंग

भर देते हैं

ये बच्चे हमें

विश्वास दिलाते हैं

बेहतर वर्तमान और

सुरक्षित भविष्य का

इन बच्चों के कंधों

पर सुरक्षित लगता है

देश का भविष्य

मिलने पर

बोलते हैं-

हमें याद है

आपका दिया नारा-

“कलम की ताकत

सच्ची विरासत"

ये बच्चे कलम पर

मेरे भरोसे को और ज्यादा

पुख्ता करते हैं।


सर्वाधिकार@बिभा कुमारी