Wednesday 30 November 2022

अप्सराएँ

 अप्सराएँ


अप्सराएँ

स्वर्ग से नहीं

उतरा करतीं

वे जहाँ

पाँव रखती हैं

स्वर्ग स्वतः

निर्मित

हो जाता है

उनके अदृश्य

पंख

नाप लेते हैं

पल भर में

आकाश

उन्हें

आती है

जीने की कला

धरती पर

जीवन

बाँटती हुई

करती चलती हैं

धन्यवाद

हितैषियों का

जिसे अक्सर

वरदान

समझ लेते हैं लोग

अप्सराएँ

किसी दूर

देश में

नहीं बसा

करतीं

बल्कि

मिल जाती हैं

किसी गाँव-शहर में

ये मिट्टी-पानी

के बीच ही

उगती और

उमगती हैं।


तुम भी न

 तुम भी न!


तुम कभी

आई लव यू

नहीं कहते

मैं भले रूठ जाऊँ

मुँह बनाऊँ

रुआँसी हो जाती

फिर कह पड़ते

कहने की

क्यों पड़ी है

तुम्हें

कहा तो झूठ

भी जा सकता है

मैं अक्सर

मुँह फुलाती

कभी तो

मेरी तारीफ करो

तुम हँसकर

कहते-

“मुझे झूठ

बोलना नहीं आता”

कनॉट प्लेस

के एक ब्लॉक

से दूसरे ब्लॉक

कितने चक्कर

लगाते रहे हम

साथ में

कई बार

यूं ही बेवजह

बिना काम के

हाँ कुछ

प्रेमी जोड़ों

को देखकर

मुस्कुराते रहे

हमदोनों

जैसे उन

सबका प्रतिनिधित्व

करते हों

हम ही

अक्सर गजरा 

बेचनेवाला लड़का

आकर खड़ा

हो जाता 

और तुम

एक साथ

पाँच-दस

खरीद लेते

मैं पूछती

क्या करना है

इतने का

तुम कहते

अरे पुराना

हिसाब है

जब नहीं

आई थी

तुम मेरे जीवन में

तब भी पूछा करता

था यह लड़का

-“साहब गजरा”

मैं कहता था

यार आने तो दे

तेरी भाभी को

गजरे तुझसे

ही खरीदूँगा।


भाव

 . भाव


मेरे हृदय में प्रेम है

उनके लिए

जो मुझे जानते हैं

उनके लिए भी

जो नहीं जानते

उनके लिए

जो मुझे

अच्छा कहते हैं

उनके लिए भी

जो अच्छा नहीं कहते

उनके लिए

जो मुझे प्यार करते हैं

उनके लिए भी

जो मुझसे नफ़रत करते हैं

उनके लिए 

जो मेरा स्वागत करते हैं

और उनके लिए भी

जो मेरा तिरस्कार करते हैं

उनके लिए जो

अपना समझते हैं

उनके लिए भी

जो पराया समझते हैं

उनके लिए जो

मित्र समझते हैं

उनके लिए भी

जो शत्रु समझते हैं

उनके लिए 

जिन्होंने औचक

खुशियों की बौछार कर दी

उनके लिए भी

जिन्होंने अचानक धोखा दिया

मेरा हृदय

रखता है भाव

अपने अनुसार

इसे सिर्फ

प्रेम का भाव मालूम है

आटे-दाल का नहीं।


Tuesday 29 November 2022

सीधी सादी लड़की

 सीधी सादी लड़की


कमतर मत आँकना

सीधी-सादी लड़की को

वह झुकती है

आदर करती है

इसलिए नहीं

कि वह कमजोर है

बल्कि इसलिए

कि वह

नेकदिल है

वह कम बोलती है

इसका मतलब

यह नहीं

कि उसके पास

शब्दों का अभाव

या जानकारी

की कमी है

बल्कि वह

मेहनत करती है

ताकि उसका

काम बोले

और दुनिया

जाने उसे उसके

काम से

और

उसके ही नाम से

वह हार

जाती है

बहुत बार लोगों से

रो भी लेती है

कभी जोर से

कभी चुपके से

पर वह

पलायन नहीं करती

जूझती है

लहूलुहान होती है

सारी उठापटक

के बावजूद

नहीं करती है

समझौते।


पहेली

 पहेली सुलझाने को तरकीब चाहिए

कोई न कोई बेहद करीब चाहिए

अकेलेपन की मार से बचा लेती है परछाई

कहानी बयां करने को अदीब चाहिए

आस बँधाने को चले हैं घर से मगर

मुझे आसमां तक पहुंचाने को रकीब चाहिए

बुराइयों के दौर में मुस्कुराना है जी भर

वक़्त का तकाज़ा है कि नसीब चाहिए

जान देना भी तो जाँबाजों का हुनर है

जोंक को भला कहाँ सलीब चाहिए

अमीरी के फलसफों से दिलवालों को क्या

हमख्याल हमसफ़र दिलअज़ीज़ चाहिए

टूट-टूटकर जुड़ेगा तो निशान पड़ेंगे

बिभा जज्बात बचेंगे जाहेनसीब चाहिए।धराऊ


Sunday 27 November 2022

आँसुओं का संक्रमण

 1.आँसुओं का संक्रमण


उपेक्षित की पीड़ा

कराहती आवाज

सुलगते शब्द

और

उसके आँसू

रुला देते हैं

उन सबको

जिनके सीने में

पत्थर की

जगह हृदय

जैसा कुछ

धड़कता है।

जब कोई

रुलाता है

किसी एक को

तो वास्तव में

रुलाता है वह

उस हरेक को

जो इंसान

के शरीर में

सचमुच

इंसान ही है।


अधिकार और कर्त्तव्य

 अधिकार और कर्त्तव्य


इंसान सीढी नहीं

कि उस पर

पाँव रख

ऊपर चढ़

भुला दिया

जाय 

इंसान टिश्यू

पेपर नहीं कि

मुँह-हाथ

पोंछ

डस्टबिन में

डाल दिया जाय

इंसान

छतरी भी

नहीं कि

स्वयं को

छुपाने के लिए

उसकी आड़

ली जाए

इंसान

निवाला

नहीं कि उसे

निगल लिया जाय

इंसान 

बर्तन-बासन नहीं

गाड़ी नहीं

चश्मा नहीं

वह इंसान है

खालिस इंसान

जिनसे

निभा सको तो

निभा लेना

इंसानियत

बस इतनी

ही तो है

एक इंसान की

दूसरे इंसान से

न्यूनतम

और अधिकतम

अपेक्षा

जो न निभा

सको यह

तो करना

इतना बस इतना

कि इस्तेमाल

न करना

कभी किसी

मासूम इंसान

की मासूमियत का

जो रखते हो

किसी पर अधिकार

देते हो

कभी प्यार

कभी ढिठाई से

आदेश

तो भूलना मत

अधिकार के

सिक्के का दूसरा पहलू

है कर्तव्य।


छवि का बरगद

 छवि का बरगद


अक्सर कविगण

लड़ पड़ते हैं

आपस में

उन्हें स्वयं

से बड़ा कोई

दिखता नहीं

अपनी विराट

छवि के

बरगद को

सींचते हुए

किसी दिन

अचानक हृदयाघात

या पक्षाघात

का शिकार

होकर गिरते हैं

और फिर,

कभी उठ नहीं

पाते हैं।


आदत से लाचार

 आदत से लाचार


मुस्कुराने के

मौसम में रो

पड़ती हैं आँखें

आखिर अपनी

आदत से 

लाचार जो हैं

बड़े-बड़े गमों

को सीने

में दबाए

मुस्कुराते हैं होंठ

दरअसल ये भी

अपनी आदत से

लाचार ही हैं।


छोटी हथेली

 हथेलियां छोटी सही

कोशिशें अभी जारी हैं

अंधेरे स्याह गहरे सही 

अब रोशनी की बारी है

पूछकर आते हैं क्यों अपने

औरों के लिए चारदीवारी है

दर्द उभरा पलकें भींग चली

मुस्कुराए होंठ ज्यों लाचारी है

वादा नहीं रुक्का नहीं दावा नहीं 

देखलें बस दिल की बेकरारी है




Saturday 26 November 2022

खूँटे की गाय

 खूँटे की गाय


गणित के घण्टे में

क्षेत्रमिति में खूँटे

से बंधी गाय

के प्रश्न हल करते हुए

वह देखने लगती थी

उस गाय में

स्वयं को

त्रिज्या, व्यास

परिधि, क्षेत्रफल

सब भूल जाती थी

छप जाती थी

आँखों में

बस गाय के

चेहरे की बेबसी

उस गाय के भाव

आईने में देखी

अपनी सूरत

सी लगती थी

इन्हीं ऊहापोह

में डूबती

उतारती

हिसाब बनाती जाती

फॉर्मूला भूल

जाती

उत्तर का मिलान

नहीं हो पाता

मास्साब छड़ी तोड़ देते

उसके ऊपर

हथेली लहूलुहान

हो जाती

कानों में पड़ते थे

मास्साब के

भर्त्सना भरे शब्द

-“ई झोंटैली

सब क्या पढ़ेगी गणित

दिमाग का गुद्दी तो

ढील खा लेती है

अपमान से

भरकर बेबसी में

आँसू बहाती

हिंदी की कक्षा में

खुसरो की पंक्ति

पढ़ाते दूसरे मास्साब

-“मैं तो बाबुल

तेरे खूँटे की गैया

 वह आश्चर्यचकित

रह जाती

उसके मन की बात

खुसरो कैसे

जान गए।


कुछ और कहाँ चाहिए

 कुछ और कहाँ चाहिए


सखियों सँग बीते शाम

तो कुछ और कहाँ चाहिए

मिलते नहीं लोग अक्सर वहाँ

होना उन्हें जहाँ चाहिए

मेरे तुम्हारे विचार 

अलग हुए तो क्या

सद्भावनाओं से बंधा समां

होना चाहिए

भूलेंगे, याद करेंगे

सोचेंगे मुहब्बत को

रहने दो हिसाब को वहीं

उसे जहाँ होना चाहिए

ऐब और हुनर की

बात क्या करें यहाँ

परखने को अदद एक इंसां

होना चाहिए

आधी रात के सपने

खूबसूरत सही

चिलचिलाती धूप में बस

इक मकां होना चाहिए

अपना वही है जो

कड़वा बोल रहा

मीठा बोलें जो उनका

इम्तिहान होना चाहिए

सौदे में अनाड़ी लोग

प्यार में कमाल करते हैं

इल्म और तालीम को

मासूमियत पर 

कुर्बान होना चाहिए

हारने वाले अक्सर

दिल जीत लेते हैं

दंगल के लिए भी

एक मैदान होना चाहिए।


मिट्टी पलीद

 मिट्टी पलीद


सदियों गुजर

जाने के बाद

याद किए जाएँगे

केवल वही

जिनकी रीढ़ की हड्डी

आज दरक

नहीं पाई है

हाँ में हाँ

मिलाने वाली जिह्वा

तो बस …..

तर माल उड़ाती है

और समय की

धूल के नीचे

मिट्टी पलीद

हो जाती है।


हार से परे

 कौन हरा सकता उसे

जिसकी मुस्कान पर लोग दिल हार जाते हों

कौन गिरा सकता उसे 

जो किसी को उठाने को छोड़ घर-बार आते हों।

मौसमों की मार से क्या मरेगा वो भला

जो स्थितप्रज्ञ बनकर

मौसमों को

पछाड़ आते हों

गिले शिकवे से ऊपर उठ गए जो रोज़ रोते थे

क्या कर लेंगे काँटे उसका

जो दामन में बहार लाते हों

जो हार गया अँधेरे से वह रोशनी नहीं

शमां जलेगी क्यों न झूम जब परवाने

हज़ार आते हों



फिरकी

 फिरकी


काम निबटाते-निबटाते

निबट जाती हैं

स्त्रियां

पर नहीं

निबट पाता

उनके हिस्से का काम

तमाम उम्र

खटकर 

बना देती हैं

इस धरती को

थोड़ा और उर्वर

आसमान की

नीलिमा को

गहरे परतों में

सजाकर

चिलचिलाती धूप

से सबको

बचा लेने को

एक झीना

आवरण सजा

देती हैं

उनका दिल

समुद्र है

जिसमें भाव

अनगिनत रत्न

की तरह

जगमगाते हैं

उन्हें किलकारी

प्रिय है

तो बांटती

चलती हैं

खिलौने, मिठाई

टॉफियां और

चॉकलेट

उन्हें सुगंध और

रंग प्रिय हैं

इसलिए चारों

ओर लगाती

चलती हैं

फुलवारी

कराह नहीं

सुन सकती हैं

काँटे चुन लेती हैं

चुटकियों से

मखमली

घास रोपकर

सबके तलवों को

कटने-फटने

से बचाने के

यत्न में

जुटी रहती हैं

अपनी भूख

और नींद

गंवाकर

सबके भोजन

चादर-कम्बल

मसहरी की

व्यवस्था में

हलकान हुई

जाती हैं

उनका प्रशिक्षण

शुरू हो

जाता है

माँ के गर्भ

से ही

माँ को अपना

ख्याल रखने को समझाती हुई वह

धीरे – धीरे

माँ जैसी ही

जुझारू-कर्मठ

दिन-रात

एक करनेवाली

फिरकी

बन जाती है

फिर सामाजिक

अनुकूलन में

ढलकर

रही सही कसर

पूरी होती है

और वे

बन जाती हैं

पूरी सुगढ़

बहुत बार

काम की उपेक्षा

की योजना

बनाती वह

स्वयं

उपेक्षित होती

चली जाती हैं


Friday 25 November 2022

स्वच्छता अभियान

 स्वच्छता अभियान


गालियां खाकर

भला पेट

भरता है क्या

बस मन

हो जाता

न जाने

कैसा-कैसा

कुछ लोग

गालियां खाने से

बेइंतहा डरते थे

सावधान

रहते थे

छोटी सी

गलती से भी

बचते थे

पर कुछ तो

गाली ही खाते

उसका ही

निवेश करते

और भरपूर

निकासी पाते

किसके जीवन

में कितनी

गाली थी

इस ओर

किसी का

ध्यान नहीं था

पर कुछ लोग

थे जो 

बचते-बचाते रहे

गालियों से

जीवन में

स्वच्छता सिर्फ

कहने भर से तो

नहीं आ सकती न।


निडर लड़की

 निडर लड़की


निडर होने की

कीमत चुकानी पड़ी

लड़की थी सो

अकेली रह गई

एक तो लड़की

ऊपर से

निडर

करेले पर नीम

कोढ़ में खाज

सबकी उँगली

उसकी ओर थी

अपने जीवन का

फैसला स्वयं

करने की कीमत

जान देकर

चुकानी पड़ी।


धूम्रपान

 धूम्रपान


धुआँ उड़ाने

से ग़म

दूर नहीं होता

ध्यान बटाने का

टोटका बनाया

बाज़ार ने

पहले सिखाया

लोगों को धुआँ पीना

जब सीख गए

बेहतर

फिर पैकेट पर

लिख डाला

धूम्रपान

स्वास्थ्य के लिए

हानिकारक है

इस एक पंक्ति से

बाज़ार को

कोई हानि नहीं

थी बाकी

इंसान की

परवाह यहाँ

है किसको?


उम्मीद की सुबह

 उम्मीद की सुबह


मुस्कुराहट फीकी सी

मनोभावों को

छुपाने की

हर कोशिश

होती नाकाम

आखिर इंसान 

जिए कैसे

उम्मीद की

सुबहें

नाउम्मीदी की

शाम बन ढ़लती है

कोई पल-पल

ज़हर पिए कैसे

एक मेरे

जीने मरने की

बात नहीं है

सबके सब

मर-मरकर

जिए कैसे


सुबह की किरणें

 सुबह की किरणें


समुद्र से 

गहरा दर्द

नन्हें से दिल को

छलनी कर

छलकता है

आँसू बन

ओस भींगी

पंखुड़ी

खिल रही

सुबह की

स्वर्णिम किरणों

सँग

कहते हैं

धूप में

ऐसी ऊर्जा होती है

जो दुख

हर लेती है।