कुछ और कहाँ चाहिए
सखियों सँग बीते शाम
तो कुछ और कहाँ चाहिए
मिलते नहीं लोग अक्सर वहाँ
होना उन्हें जहाँ चाहिए
मेरे तुम्हारे विचार
अलग हुए तो क्या
सद्भावनाओं से बंधा समां
होना चाहिए
भूलेंगे, याद करेंगे
सोचेंगे मुहब्बत को
रहने दो हिसाब को वहीं
उसे जहाँ होना चाहिए
ऐब और हुनर की
बात क्या करें यहाँ
परखने को अदद एक इंसां
होना चाहिए
आधी रात के सपने
खूबसूरत सही
चिलचिलाती धूप में बस
इक मकां होना चाहिए
अपना वही है जो
कड़वा बोल रहा
मीठा बोलें जो उनका
इम्तिहान होना चाहिए
सौदे में अनाड़ी लोग
प्यार में कमाल करते हैं
इल्म और तालीम को
मासूमियत पर
कुर्बान होना चाहिए
हारने वाले अक्सर
दिल जीत लेते हैं
दंगल के लिए भी
एक मैदान होना चाहिए।
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