छवि का बरगद
अक्सर कविगण
लड़ पड़ते हैं
आपस में
उन्हें स्वयं
से बड़ा कोई
दिखता नहीं
अपनी विराट
छवि के
बरगद को
सींचते हुए
किसी दिन
अचानक हृदयाघात
या पक्षाघात
का शिकार
होकर गिरते हैं
और फिर,
कभी उठ नहीं
पाते हैं।
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