तुम भी न!
तुम कभी
आई लव यू
नहीं कहते
मैं भले रूठ जाऊँ
मुँह बनाऊँ
रुआँसी हो जाती
फिर कह पड़ते
कहने की
क्यों पड़ी है
तुम्हें
कहा तो झूठ
भी जा सकता है
मैं अक्सर
मुँह फुलाती
कभी तो
मेरी तारीफ करो
तुम हँसकर
कहते-
“मुझे झूठ
बोलना नहीं आता”
कनॉट प्लेस
के एक ब्लॉक
से दूसरे ब्लॉक
कितने चक्कर
लगाते रहे हम
साथ में
कई बार
यूं ही बेवजह
बिना काम के
हाँ कुछ
प्रेमी जोड़ों
को देखकर
मुस्कुराते रहे
हमदोनों
जैसे उन
सबका प्रतिनिधित्व
करते हों
हम ही
अक्सर गजरा
बेचनेवाला लड़का
आकर खड़ा
हो जाता
और तुम
एक साथ
पाँच-दस
खरीद लेते
मैं पूछती
क्या करना है
इतने का
तुम कहते
अरे पुराना
हिसाब है
जब नहीं
आई थी
तुम मेरे जीवन में
तब भी पूछा करता
था यह लड़का
-“साहब गजरा”
मैं कहता था
यार आने तो दे
तेरी भाभी को
गजरे तुझसे
ही खरीदूँगा।
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