खूँटे की गाय
गणित के घण्टे में
क्षेत्रमिति में खूँटे
से बंधी गाय
के प्रश्न हल करते हुए
वह देखने लगती थी
उस गाय में
स्वयं को
त्रिज्या, व्यास
परिधि, क्षेत्रफल
सब भूल जाती थी
छप जाती थी
आँखों में
बस गाय के
चेहरे की बेबसी
उस गाय के भाव
आईने में देखी
अपनी सूरत
सी लगती थी
इन्हीं ऊहापोह
में डूबती
उतारती
हिसाब बनाती जाती
फॉर्मूला भूल
जाती
उत्तर का मिलान
नहीं हो पाता
मास्साब छड़ी तोड़ देते
उसके ऊपर
हथेली लहूलुहान
हो जाती
कानों में पड़ते थे
मास्साब के
भर्त्सना भरे शब्द
-“ई झोंटैली
सब क्या पढ़ेगी गणित
दिमाग का गुद्दी तो
ढील खा लेती है
अपमान से
भरकर बेबसी में
आँसू बहाती
हिंदी की कक्षा में
खुसरो की पंक्ति
पढ़ाते दूसरे मास्साब
-“मैं तो बाबुल
तेरे खूँटे की गैया
वह आश्चर्यचकित
रह जाती
उसके मन की बात
खुसरो कैसे
जान गए।
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