Saturday 26 November 2022

हार से परे

 कौन हरा सकता उसे

जिसकी मुस्कान पर लोग दिल हार जाते हों

कौन गिरा सकता उसे 

जो किसी को उठाने को छोड़ घर-बार आते हों।

मौसमों की मार से क्या मरेगा वो भला

जो स्थितप्रज्ञ बनकर

मौसमों को

पछाड़ आते हों

गिले शिकवे से ऊपर उठ गए जो रोज़ रोते थे

क्या कर लेंगे काँटे उसका

जो दामन में बहार लाते हों

जो हार गया अँधेरे से वह रोशनी नहीं

शमां जलेगी क्यों न झूम जब परवाने

हज़ार आते हों



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