कौन हरा सकता उसे
जिसकी मुस्कान पर लोग दिल हार जाते हों
कौन गिरा सकता उसे
जो किसी को उठाने को छोड़ घर-बार आते हों।
मौसमों की मार से क्या मरेगा वो भला
जो स्थितप्रज्ञ बनकर
मौसमों को
पछाड़ आते हों
गिले शिकवे से ऊपर उठ गए जो रोज़ रोते थे
क्या कर लेंगे काँटे उसका
जो दामन में बहार लाते हों
जो हार गया अँधेरे से वह रोशनी नहीं
शमां जलेगी क्यों न झूम जब परवाने
हज़ार आते हों
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