उम्मीद की सुबह
मुस्कुराहट फीकी सी
मनोभावों को
छुपाने की
हर कोशिश
होती नाकाम
आखिर इंसान
जिए कैसे
उम्मीद की
सुबहें
नाउम्मीदी की
शाम बन ढ़लती है
कोई पल-पल
ज़हर पिए कैसे
एक मेरे
जीने मरने की
बात नहीं है
सबके सब
मर-मरकर
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