काछुए रहितौं ने
खोलेमे रहबाक छल
त काछुए रहितौंने
ज मुड़ी बालुएमे
ढुकौन रखबाक’
छल त’
शुतुरमुरगे होइतौं ने
ज सीखबाक छल
ड्सनाइए त’
गहुमने होइतौं ने
ज बिन्हब अपन
प्रकृति बनेबाक छल
त बिरह्निए हेबाक
छल ने
ज दूरि करबाक
छल अनकर
परसल थारी त’
गन्हकिए होइतौं ने
ज हेबाके अछि किछु
त किएक नहि भ’जाइ
गबैत कोयली, उमकैत नदी
घनगर वृक्ष वा
गमकैत फूल।
बिसरि जाइ छी
हमरा लोकनि
अपन कर्तव्य
मोन रहि जाइत
अछि छूछे
अधिकार किए?
किए बिसरा जाइत
अछि अनेरे
अपन मनुक्ख
भेनाई?
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