Tuesday 18 October 2016

सम्प्रेषण

आँखों की जुबां होती है,
यह तो सब कहते हैं,
पर जुबां तो,
जर्रे - जर्रे की होती है।
अगर,
नेत्र बन्द कर लिए जाएँ,
तब भी,
एहसास हो जाता है,
वह सब......
जो देखकर या सुनकर होता…
हवा, पानी,आसमान,मिट्टी,
इन सब में,
न जाने कैसे,
घुल जाती हैं,
भावनाएं,
जो पहुँच जाती हैं,
मन - मष्तिष्क तक.....
तभी तो,
महसूस हो जाता है,
वह भी,
जो अदृश्य अश्रव्य है।

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