Tuesday 25 October 2016

कहते होंगे

दरवाजे पर हुई,
हल्की आहट से,
आ गई,
होठों पर,
हल्की मुस्कान।
अपने ही चेहरे की,
चमक ने,
बता दिया,
वह सत्य,
जिससे आज तक,
इन्कार करती रही है।
कहते हैं,
आईना झूठ नहीं बोलता,
कहते होंगे,
तो-?
मन के दोनों पलड़े,
उलझे पड़े हैं,
लम्बे समय से।
आईने से हट,
आ गयी है,
दरवाजे के ठीक पीछे,
- बेल तो बजी नहीं,
जरूर धोखा हुआ है,
मुड़कर जाना चाहती है,
फिर से आईने की तरफ।
रोज़ खुले रहने वाले बाल,
आज बन्ध गए हैं जूड़े में,
छोटी बिंदी का स्थान भी,
बड़ी बिंदी ले चुकी है।
कहते हैं,
प्यार में इंसान,
करता है,
ऐसे ही नए - नए प्रयोग,
अपने - आपको,
बना डालता है,
प्रयोगशाला।
कहते होंगे,
तो -?
सुबह से शाम हो गयी है,
कभी गाड़ी का हॉर्न,
कभी जूतों की आहट,
कम से कम,
बीस बार,
आईने से दरवाजे तक,
कर चुकी है परेड।
बज रही है बेल,
सचमुच इस बार,
दरवाजा खोलते हुए,
इतना,
शरमा क्यों रही है ?
कहते हैं,
प्यार में इंसान,
शर्माता है यूँ ही।
कहते होंगे,
तो -?

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