Wednesday 23 September 2015

दोष किसका है

आग से उम्मीद करते हो,
शीतलता की,
फिर दोष किसका है ?
आग का,
या तुम्हारा ?
कहाँ अवसर दिया था,
तुमने आग को,
कि प्रस्तुत कर सके वह,
अपने गुणों को,
कहाँ था तुममें इतना धैर्य,
कि सोच सकते-
कि होती है सबकी,
अपनी-अपनी प्रकृति।
और यही बनाती है,
उसे औरों से विशिष्ट।
तुमने तो सीधा ही,
आग के गोले को,
पकड़ लिया था अपनी मुट्ठी में,
अब ऐसे में,
यदि………..
जल गया हाथ,
तो दोष किसका है ?
काश कि तुमने जाना होता,
आग का सदुपयोग,
सीखा होता,
उसकी आँच पर,
स्वादिष्ट खाना पकाना,
या कड़कती ठंड में,
महसूस किया होता,
उसके मधुर,
आरामदायक सेंक को।
कम से कम,
इतना ही पता कर लिया होता,
कि धूमन और देवदार के,
नन्हें टुकड़ों से संपर्क पाकर,
सुगंध से भर देती है आग,
समूचे वातावरण को,
चोट-मोच,दर्द……..
इन सबसे,
राहत दिलाती है आग,
उन सब को..............
जो जानते हैं,
उसके गुणों को।
अपनी गलती को न पहचान,
अगर कोस रहे हो तुम,
आग को……….
तो एक बार फिर से सोचो,
वास्तव में,
दोष किसका है।    

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