दवाजे पर ही लगा रहता है ध्यान उसका,
जबकि भली- भाँति पता है,
अभी बहुत वक्त बाकी है,
उसे आने में।
क्या करे वह भी,
सब कुछ जानने के बाद भी,
नहीं रहा जाता है उससे,
इंतज़ार की जैसे आदत सी,
पड़ गयी है।
ठीक वैसी ही,
जैसी हर शराबी को आदत हो जाती है,
शराब की।
उसे भी पता होता है,
शराब घातक है,
पर रह नहीं पाता वह बिना पिये,
बार-बार खायी है मन ही मन कसमें,
नहीं उठना है अब किसी भी,
आहट पर,
नहीं ध्यान देना है,
किसी पुकार पर,
नहीं सुननी है,
कोई भी दस्तक,
पर अगले ही पल,
फिर,
कमज़ोर पड़ जाती हैं,
सारी कसमें,
और प्रबल हो जाती हैं,
उम्मीदें ।
कुछ उसे कहते हैं,
बहुत समझदार,
तो कुछ बहुत बेवकूफ़,
आशा और विश्वास ,
के बीच- बीच में,
सर उठा लेती है,
कई-कई बार,
उदासी,
घोर निराशा,
और मायूसी,
पर फिर,
कुछ ही पलों के पश्चात,
फिर केंद्रित हो जाता है ध्यान,
दरवाजे पर,
आहट, पुकार,
और,
दस्तक.............
जबकि भली- भाँति पता है,
अभी बहुत वक्त बाकी है,
उसे आने में।
क्या करे वह भी,
सब कुछ जानने के बाद भी,
नहीं रहा जाता है उससे,
इंतज़ार की जैसे आदत सी,
पड़ गयी है।
ठीक वैसी ही,
जैसी हर शराबी को आदत हो जाती है,
शराब की।
उसे भी पता होता है,
शराब घातक है,
पर रह नहीं पाता वह बिना पिये,
बार-बार खायी है मन ही मन कसमें,
नहीं उठना है अब किसी भी,
आहट पर,
नहीं ध्यान देना है,
किसी पुकार पर,
नहीं सुननी है,
कोई भी दस्तक,
पर अगले ही पल,
फिर,
कमज़ोर पड़ जाती हैं,
सारी कसमें,
और प्रबल हो जाती हैं,
उम्मीदें ।
कुछ उसे कहते हैं,
बहुत समझदार,
तो कुछ बहुत बेवकूफ़,
आशा और विश्वास ,
के बीच- बीच में,
सर उठा लेती है,
कई-कई बार,
उदासी,
घोर निराशा,
और मायूसी,
पर फिर,
कुछ ही पलों के पश्चात,
फिर केंद्रित हो जाता है ध्यान,
दरवाजे पर,
आहट, पुकार,
और,
दस्तक.............
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