पिता के आते ही,
दौड़कर थमाती थी,
पानी से भरा लोटा।
कुएं पर जाकर,
धो लाती थी,
पसीने से भींगा,
उनका कुर्ता,गंजी
और गमछा।
सुबह निकलते वक्त,
चमकाकर उनके जूते,
अपनी चुन्नी की किनारी से,
पहनाती थी,
अपने हाथों से।
जाड़े के दिनों में,
दौड़कर .........
देती थी उन्हें,
बन्डी और दुशाला,
गर्मी में घंटों,
झलती थी,
कोमल हाथों से पंखा,
पर,
पिता शाम में आते ही,
भैया को उठाते थे गोद में।
माँ से कहा –
तो उन्होंने समझाया-
“बिटिया !
तेरे पिता करते हैं तुझसे
बहुत प्यार.......
पर अब तू बड़ी हो गयी है न
इसीलिए............”
मान ली थी माँ की बात,
पर,
जब शहर जाकर,
पढ़ने की बारी आई,
तो पिता ने,
भेजा भाई को।
माँ ने फिर,
आवाज़ में शहद घोल कर
समझाया-
“बिटिया !
तेरी पढ़ाई प्राइवेट करवा देंगे।
दो को शहर भेजकर पढाने के,
नहीं हैं पैसे।
बहुत रोई उस दिन,
बहुत रोई।
एक महीने के भीतर ही,
पिता को,
अम्माँ से कहते सुना-
“कर आए हैं .........
बिटिया का रिश्ता पक्का,
पराई अमानत,
जितनी जल्दी उठे,
उतना ही शुभ।”
फिर से……
बहुत रोई उस दिन,
दिन से रात तक,
रोती रही,
बस !
रोती ही रही।
लाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद हिमानी
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteभावपूर्ण और मार्मिक
ReplyDeleteधन्यवाद भावना
DeleteHeart touching poem... !
ReplyDeleteThank you.
DeleteAwesome poem mam
ReplyDeleteThank you Jyoti
DeleteNishabd. Bahut sundar.
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