चलते-चलते थककर गिर
जाना,
संभलकर उठना,
हिम्मत जुटा,
फिर चलना।
आखिर,
कभी तो पहुँचेगी
ही,
अपने गंतव्य तक
वह भी।
सुनती आई थी,
बचपन से ही,
सबकुछ है,
इसी मन के ऊपर,
मन हारे तो ही
कोई हारता है।
आखिरी साँस तक भी,
नहीं हारने देगी,
अपने मन को वह।
लड़ेगी,
जूझेगी,
संघर्ष करेगी,
लेकिन बना कर ही
रहेगी,
अपनी एक स्वतंत्र
पहचान।
अब और नहीं
पहचानी जाएगी वह,
पिता,भाई,पति या पुत्र के
नाम से,
एक दिन बना कर ही
रहेगी,
इस दुनिया में,
अपनी एक खास
पहचान,
जब वह जानी जाएगी,
सिर्फ़ और सिर्फ़,
अपने नाम से।
इस यात्रा में,
वह थकेगी,
पर,
रुकेगी नहीं,
गिरेगी..........
पर,
हर बार,
उठ कर चल देगी,
बची दूरी को तय
करने के लिए।
bahut achha ,
ReplyDeletemesmerising
thank you very much sir for appreciations.
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