Wednesday 28 September 2016

दस्तख़त

हाँ.......
ले लो मेरे हस्ताक्षर,
और ऊपर....
विस्तार से,
लिख लो,
पूरा ब्यौरा।
पूर्णतः स्पष्ट रहें,
नियम व् शर्तें भी।
कर लो अपनी,
पूरी तस्सल्ली।
ताकि,
मैं मुकर न जाऊँ,
कल को।
कितनी बुद्धू हूँ,
मैं भी,
सोचती थी .......
विश्वास से बड़ा,
कोई मसौदा नहीं,
दोस्ती से बड़ा,
कोई करारनामा नहीं।
हा हा,
कितनी पागल हूँ,
मैं भी,
ऊल - जुलूल बातों को,
भरे बैठी हूँ,
दिलो - दिमाग,
और आदतों में।
अच्छा ही किया,
तुमने........
जो सिखा दिया मुझे,
कि,
कभी न करना,
किसी पर भरोसा,
चाहे उसने,
तुम्हारा साथ,
अब तक निभाया हो,
न सुन पाया हो,
तुम्हारे विरुद्ध,
एक शब्द भी,
तब भी,
हाँ तब भी।
पर एक बात,
जान लो,
तुम भी,
आज मुझसे,
कि जहाँ,
दस्तख़त आ जाता है,
वहाँ से,
दोस्ती खिसक लेती है।

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