मुझे कहना था कुछ तुमसे,
जरा ठहरो तो,
कह दूँ मैं,
ये जो पागल बनी फिरती हूँ,
तेरे प्यार में डूबी-डूबी।
कह दो बस आज कह दो,
ग़र है तुम्हें इल्म जरा भी।
कैसे बतलाऊँ तुझको,
हो गयी मैं ख़ुद से पराई।
नहीं थी ऐसी पहले मैं,
तुम मानो या न मानो,
हो गया है प्यार तुम से,
चाहे तुम न पहचानो।
दिखते हो मुझे बस तुम ही,
जहाँ भी ये नज़र जाती है।
तेरी आवाज़ की दिशा में,
दिल खिंचा चला जाता है,
तेरे कदमों की आहट सुन,
झट उठ कर चल देती हूँ।
चलता नहीं,
अब अपना कुछ,
बस सपनों में खोई रहती हूँ।
नहीं होश है अब,
दिन-रात का,
ना भूख-प्यास लगती है।
क्यों हँस देते हो मुझ पर,
जब हाल बयां करती हूँ,
क्यों चल देते हो उठ कर,
जब मैं रुकने कहती हूँ।
Ehsaash ko sabdon mein utaar diya as aapne.
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