रास्ते पर चलते-चलते,
अचानक,
आता है मोड़,
जहाँ से फूटते हैं,
दो रास्ते।
कभी कभी तीन या चार,
और,
कभी तो इनसे भी अधिक।
संशय की स्थिति,
किधर जाएँ?
समस्या यहीं समाप्त भी तो,
नहीं होती न।
सुगम रास्ता जो प्रतीत हो रहा,
उस पर चलने से,
स्वयं से हो जाये,
शायद विरक्ति,
क्योंकि तब,
जीवन भर की,
आत्मग्लानि की अनुभूति,
इन समस्त चक्रव्यूहों से,
कहीं अधिक,
कष्टप्रद होगी ।
आकांक्षा, लक्ष्य और मार्ग की,
जद्दोजहद में,
असफलता का भय,
बढ़ाता है मानसिक दबाब,
और मिटता जा रहा है,
अपना ही अस्तित्व,
स्वयं को सिद्ध करने के प्रयास में।
अचानक,
आता है मोड़,
जहाँ से फूटते हैं,
दो रास्ते।
कभी कभी तीन या चार,
और,
कभी तो इनसे भी अधिक।
संशय की स्थिति,
किधर जाएँ?
समस्या यहीं समाप्त भी तो,
नहीं होती न।
सुगम रास्ता जो प्रतीत हो रहा,
उस पर चलने से,
स्वयं से हो जाये,
शायद विरक्ति,
क्योंकि तब,
जीवन भर की,
आत्मग्लानि की अनुभूति,
इन समस्त चक्रव्यूहों से,
कहीं अधिक,
कष्टप्रद होगी ।
आकांक्षा, लक्ष्य और मार्ग की,
जद्दोजहद में,
असफलता का भय,
बढ़ाता है मानसिक दबाब,
और मिटता जा रहा है,
अपना ही अस्तित्व,
स्वयं को सिद्ध करने के प्रयास में।
Wah meri dost bahut badhiya
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद। तुम दोस्तों का प्यार और प्रोत्साहन मुझे नई ऊर्जा से भर देता है।
Deleteबहुत धन्यवाद। तुम दोस्तों का प्यार और प्रोत्साहन मुझे नई ऊर्जा से भर देता है।
Delete