Sunday 24 April 2016

सपनों का अस्तित्व

सुबह की लंबी परछाई,
सिमट कर हो जाती,
कितनी छोटी,
जब सूर्य आ जाता,
ठीक सर के ऊपर,
और सूर्य ढलने की,
गति के साथ ही,
परछाई लेने लगती,
बड़ा आकार,
फिर,
शाम होते - होते,
हो जाती,
पुनः लंबी......
ठीक अपने सपनों की तरह।

No comments:

Post a Comment