Tuesday 26 April 2016

दिग्भ्रमित

स्मृति-पटल पर,
बार-बार किसी का आना,
अनायास,
न चाहते हुए भी,
स्वयं को रोकने पर भी,
तो क्या समझा जाये।
उसकी स्मृति में भी,
है तुम्हारी उपस्थिति?
ऐसा सोच लेना,
न्यायप्रद है क्या?
नहीं.....
नहीं.......
कोसों दूर रहकर भी,
अक्सर,
दिख जाता है कोई चेहरा,
हँसता - मुस्कुराता,
और कभी,
बहुत उदास,
तो क्या समझा जाये,
कि उस उदासी की वज़ह,
तुमसे दूर रहना है,
शायद!
हो सकता है,
पर.......
फिर भी,
मन कहता है,
नहीं.......
नहीं........
पता नहीं,
स्वीकार करने की,
शक्ति नहीं है,
इंकार का भय है,
या फिर कोई और कारण?
क्यों सारी अनुभूतियाँ,
भ्रम प्रतीत होती है,
आखिर क्यों है तेरी,
दिग्भ्रमित सी स्थिति ?

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