Sunday 24 April 2016

कैद पंछी

मन!
है कितना नादान।
कल्पना के पंख लगाकर,
उड़ तो सकता है,
किन्तु मेरे क़दमों में,
वही गति तो क्या,
उसका शतांश लाने में भी,
है असमर्थ,
क्योंकि,
मन के पंछी को,
किसी ने,
कैद कर रखा है,
लोहे के पिंजड़े में।
पिंजड़े के आस पास खड़े लोग,
उसके पंख,चोंच आदि को देख,
अपना मन बहला रहे हैं,
फिर,
उसे कुछ बोलने को,
प्रेरित कर रहे हैं,
ताकि मनोरंजन,
सम्पूर्ण हो सके,
ठान लिया है,
मन के नन्हे पंछी ने,
नहीं दुहरायेगा,
वह कोई भी,
शब्द या वाक्य,
नहीं करेगा,
किसी की आज्ञा का पालन,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा,
उसे या तो उड़ा दिया जायेगा,
या,
मार दिया जायेगा,
पहली में मिलेगी मुक्ति,
और दूसरी में मोक्ष।
ये दोनों ही स्थितियां,
लोहे के पिंजड़े की कैद से,
लाख गुणा अच्छी होंगी।
नहीं रह गया है,
अब मन,
इतना भी नादान।
अपनी ताकत से भले ही,
कोई कैद कर ले उसे,
उसकी इच्छाएँ,
नहीं छीन सकता,
उससे कोई भी।

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