Sunday 24 April 2016

खोज

खोज है उस शक्ति की,
जिसके सहारे लड़ सकूँ,
मुश्किलों से,
कर सकूँ सामना,
मुसीबतों का।
जगाना है उस आत्मविश्वास को,
जिसके सहारे,
खड़ी कर सकूँ स्वयं को,
इस बड़ी दुनियाँ में।
कर सकूँ अन्त,
अनसुलझे सवालों का।
बहुत उम्मीदें तो नहीं थीं,
पर,
जितनी भी थीं,
उसे हासिल कर लेना,
इस दुनियाँ में,
अगर आसान होता,
तो फिर किसी के चेहरे पर,
मायूसी नहीं होती।
सामर्थ्य होते हुए भी,
प्रतियोगिता में जीत,
मिल ही जाये,
ये निश्चित तो नहीं,
फिर,
कैसे निश्चिंत करूँ मन को।
यहाँ तो,
अजीबोगरीब हालात हैं,
जिसमें एक के सर पर,
पैर रखकर खड़े होने में भी,
कोई ग्लानिभाव नहीं आता,
किसी के मन में।
कुछ हैं मुझसे,
लोग अभी भी शेष,
जिन्हें दुनियाँ,
मूर्ख कहती है,
क्या करें ऐसी समझदारी का,
जो हमारी इंसानियत ही,
छीन ले।
भरोसा स्वयं पर,
कायम है अभी तो,
अभी तो पहुंचना है,
उन सभी शेष,
गंतव्यों तक,
जिनके लिये,
यात्रा प्रारम्भ की थी।
श्रम से भागना कभी,
जाना ही नहीं।
क़दमों को कभी,
शिथिल होने ही नहीं दिया।
समय के साथ,
मेरे भीतर से ही,
आएगी वह शक्ति,
जिसके सहारे,
चल सकूँगी,
निर्भीक होकर,
खोल सकूँगी,
नई राहों के द्वार।

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