जब भी वह सामने आता-
मुस्कुराकर ,
'हेलो' कहता,
फिर और बड़ी मुस्कराहट के साथ पूछता-
"कैसी हैं आप"
चौंक उठती वह,
कोई इतने प्यार से,
उससे भी बात कर सकता है,
विश्वास नहीं होता,
अम्मा बाबा के बाद तो,
उपेक्षित सी रहने की आदत सी,
पड़ चुकी है।
मैं पूछ रहा हूँ,
कैसी हैं आप?
आर यू फ़ीलिंग बेटर?
कुछ प्रश्नों के उत्तर तो,
निर्धारित हैं,
इसलिए वह कह देती-
अच्छी हूँ।
पर आँखों और चेहरे के,
भावों से तो.....
तन-मन की पीड़ा,
बयां हो ही जाती है।
खासकर तब,
जब पूछनेवाला डॉक्टर हो,
और हाल बताने वाला रोगी।
और ऊपर से,
बीमारी भी ऐसी।
एक तो स्तन कैंसर,
कोढ़ में खाज कि,
वह भी आखिरी स्टेज में......
पल - पल छीज रही थी वह,
ज़िन्दगी को कहीं से,
बटोर लाना चाहती थी,
पर ज़िन्दगी थी कि,
मुट्ठी से रेत की तरह,
फिसलती जा रही थी।
सुन रखा था उसने-
अधिक उम्र तक,
अविवाहित रहने,
संतानोत्पत्ति न होने से,
होता है-
स्तन कैंसर का खतरा।
पर,
कहाँ जानती थी कि,
गाज गिरनी ही थी।
ध्यान तब गया था,
जब स्तनों से बहने लगा था मवाद,
लगा था कि दूध है,
पहले तो आश्चर्य चकित हुई थी,
फिर ख्याल आया था,
दिन-रात,
भतीजे - भतीजी को,
गोद में खिलाती है,
शायद ममता से दूध उतर आया है।
उसने कई औरतों के मुंह से,
ऐसी कहानियां सुनी थी,
जिनमें ममता के प्रभाव से,
दूध उतर आने का जिक्र था।
बड़ी भाभी को बताया तो,
अजीब नज़रों से देखने लगीं,
शायद उसे,
ननद के चरित्र पर शक हो गया था,
उसे लगा था कि,
गर्भ ठहर गया है,
और इसीलिए,
दूध उतर आया है।
उसने देवरानी को आवाज दी,
फिर,
दोनों आपस में खुसुर-फुसुर,
करने के बाद,
एक स्वर में बोलीं
-दिखा
सकुचा सी गयी वह.......
बड़ी भाभी ने उसकी,
एक न सुनी।
ब्लाउज के बटन,
खोलने लगी।
वह भागने को हुई तो,
छोटी भाभी ने कहा-
"उसके सामने नहीं आई थी शरम?"
वह हक्की-बक्की सी ठिठक गई....
पर यह क्या-
बड़ी भाभी के हाथ लगाकर दबाते ही,
खून बहने लगा था।
उस दिन के बाद से,
शुरू हुआ था,
जाँच और इलाज का,
लंबा सिलसिला।
पीड़ा से भर गया था,
तन-मन।
हाय री किस्मत......
नहीं खुल पाये थे,
जो स्तन,
प्रेमी,पति और शिशु के समक्ष,
वो खुले थे,
जाँच और ईलाज के लिए.......
ये प्रक्रियाएं भी कम कष्टप्रद नहीं थीं।
ओपीडी, वार्ड,डॉक्टर, नर्स.....
चेकप, मशीनें,एफ एन ए सी, मेमोग्राफी,
वगैरह वगैरह,
डॉक्टर नर्स अपनी भाषा में,
जाने क्या क्या बोलते,
पर्ची लिखकर फ़ाइल में डालते,
और फ़ाइल के साथ,
इस फ्लोर से उस फ्लोर,
कभी पैदल,कभी व्हीलचेयर पर,
कभी स्ट्रेचर पर वह,
जब जैसी हालत होती,
और सबसे बढ़कर कीमोथेरेपी,
जिसके लिए कहा जाता था,
जान बचाने के लिए है,
पर थी जानलेवा।
जब अच्छी-भली थी,
कोई हाल पूछने वाला नहीं मिला,
जब भाई-भाभी उससे सारा काम करवाते,
तब भी वह बुरा नहीं मानती,
थकती तो कभी थी ही नहीं।
उसे लगता कैसे किसी को जुकाम होता है?
वह तो रात में भी कपड़े धो लेती,
जाड़े में भी सर पर ठंडा पानी डालकर,
नहा लेती।
उसका स्वस्थ और मेहनती होना ही,
अभिशाप हो गया।
अपने मुँह से अपने विवाह की बात,
करती तो कैसे?
भाई भाभी कान में तेल डाले,
उसका विवाह टालते गए।
कई बार सोचा-
भाग जाये किसी छोरे के साथ,
पर,
किसी से मुलाकात तो तब होती,
जब घर से बाहर निकलने की,
कोई गुंजाईश होती,
घर में आनेे वालों से भी उसे दूर ही रखा जाता।
अब जब कोई भी साँस,
आखिरी हो सकती है,
किसी भी पल दम टूट सकता है,
इस डॉक्टर ने जीवन की,
कीमत का एहसास करा दिया है।
जब वो राउंड पर आता है,
बीमारी में भी वो जी उठती है,
इतनी ख़ुशी तो कभी स्वस्थ रहकर भी,
नहीं मिली थी।
याद आता -भाई के आने पर,
भाभी का खिल-खिल जाना।
सोचती ये डॉक्टर मेरा जन्मों का साथी है,
इंसानों ने नहीं मिलवाया,
तो भगवान ने उससे मिलवाने के लिए,
बीमारी दे दी।
और, नहीं तो क्या?
इतने बड़े अस्पताल में,
उसी डॉक्टर के पास,
उसे क्यों भेजा गया।
बचपन याद आता,
उसके लंबे घने बालों में,
तेल डालकर,
हल्के हाथों से थपकी देकर,
मालिश करती हुई,
माँ,
उसका विवाह राजकुमार से,
करने की बातें करती।
अचानक हाथ सर पर गया,
जहाँ अब एक भी बाल नहीं।
पहले दिन डॉक्टर उसके बालों और चेहरे को,
देखता रह गया था।
नर्स समझाती-
"हम देखता,
तुम डॉक्टर के प्यार में पड़ता,
ये उसका काम है,
उधर ज्यादा ध्यान नहीं देने का,
मरीज से प्यार से बोलना,
उसका ड्यूटी है।
वो इधर ज़िन्दगी देने आया है,
इसलिए अच्छे से,
प्यार से बोलता,
उसे हर पेशेंट का ज़िन्दगी,
बाल और स्किन से सिम्पैथी होता।
हम गॉड से प्रे करता-
तुम जब इधर से ठीक होकर जाइनगा,
तुझे डॉक्टर से भी अच्छा हस्बेंड मिले।
वो शादीशुदा है,
उसका मिसेस भी डॉक्टर है,
गेनीकोलॉजिस्ट।
जब तुम्हारा बेबी होइनगा,
तो उसी के अस्पताल में जाना,
मैडम भी बहुत अच्छा,
एकदम इसी का माफ़िक।"
यदि यह डॉक्टर की सहानुभूति है,
तो भी उसके लिए,
यह अनमोल है।
जाने क्या-क्या ख्याल आते रहते,
एक बार भी भाई-भाभी मिलने नहीं आये थे,
जबकि डॉक्टर बता चुके थे ,
कि बीमारी संक्रामक नहीं है।
बीमारी तो थी ही,
मन में उठने वाले सवाल भी,
जीने नहीं देते थे.....
अम्मा-बाबा को इतनी जल्दी क्योँ थी?
जाने की।
भाइयों को इतनी जल्दी क्यों थी,
अपनी शादियों की।
-एक बार भी सोचा होता उसकी शादी के बारे में-
काश!
तभी सामने आकर डॉक्टर ने,
फिर कहा था-
"हेलो"
कैसी हैं आप?"
- "डॉक्टर!
मुझसे शादी कर लो।
मुझे प्यार हो गया है,
तुमसे........
बीमारी से तो मुझे तुम,
बचा ही लोगे,
पर,
तुम्हारी मुस्कराहट,
मेरी जान ले चुकी है।"
-"सिस्टर प्लीज़ कम।
हरी अप।
ब्रिंग स्ट्रेचर।
क्विक।
इमरजेंसी है,
बेड नं 18 पेशेंट की हालत,
बहुत नाज़ुक है,
शी इज सिंकिंग.......
उस पल उसके मन में आया था,
वह डॉक्टर के गले लग जाये,
सीने से चिपट कर कहे,
वह पूरे होशो हवास में है,
उसे सचमुच उससे प्यार हो गया है।
पर यह क्या......
आँखों के आगे अँधेरा - अँधेरा,
कान में फिर डॉक्टर की,
मीठी आवाज़-
"ब्रेव गर्ल!
कम ऑन।
हमलोग दिख रहे हैं?"
_हाँ हाँ...
"यू केम बैक यू नो?"
चेहरे पर वही,
जानलेवा मुस्कान।
-लगता है सच्ची वह होश में नहीं थी,
वरना अब क्यों नहीं बोल पा रही,
वह सब।
मन में होने पर भी,
पहले भी कहाँ बोल पायी थी?
पल भर बाद ही,
वही सवाल,
वही प्यारी आवाज-
"कैसी हैं आप?"
इस बार उसने भी मुस्कुराकर उत्तर दिया-
-अच्छी हूँ डॉक्टर!
मैं जानती हूँ,
आप मुझे मरने नहीं देंगे।
मुस्कुराकर ,
'हेलो' कहता,
फिर और बड़ी मुस्कराहट के साथ पूछता-
"कैसी हैं आप"
चौंक उठती वह,
कोई इतने प्यार से,
उससे भी बात कर सकता है,
विश्वास नहीं होता,
अम्मा बाबा के बाद तो,
उपेक्षित सी रहने की आदत सी,
पड़ चुकी है।
मैं पूछ रहा हूँ,
कैसी हैं आप?
आर यू फ़ीलिंग बेटर?
कुछ प्रश्नों के उत्तर तो,
निर्धारित हैं,
इसलिए वह कह देती-
अच्छी हूँ।
पर आँखों और चेहरे के,
भावों से तो.....
तन-मन की पीड़ा,
बयां हो ही जाती है।
खासकर तब,
जब पूछनेवाला डॉक्टर हो,
और हाल बताने वाला रोगी।
और ऊपर से,
बीमारी भी ऐसी।
एक तो स्तन कैंसर,
कोढ़ में खाज कि,
वह भी आखिरी स्टेज में......
पल - पल छीज रही थी वह,
ज़िन्दगी को कहीं से,
बटोर लाना चाहती थी,
पर ज़िन्दगी थी कि,
मुट्ठी से रेत की तरह,
फिसलती जा रही थी।
सुन रखा था उसने-
अधिक उम्र तक,
अविवाहित रहने,
संतानोत्पत्ति न होने से,
होता है-
स्तन कैंसर का खतरा।
पर,
कहाँ जानती थी कि,
गाज गिरनी ही थी।
ध्यान तब गया था,
जब स्तनों से बहने लगा था मवाद,
लगा था कि दूध है,
पहले तो आश्चर्य चकित हुई थी,
फिर ख्याल आया था,
दिन-रात,
भतीजे - भतीजी को,
गोद में खिलाती है,
शायद ममता से दूध उतर आया है।
उसने कई औरतों के मुंह से,
ऐसी कहानियां सुनी थी,
जिनमें ममता के प्रभाव से,
दूध उतर आने का जिक्र था।
बड़ी भाभी को बताया तो,
अजीब नज़रों से देखने लगीं,
शायद उसे,
ननद के चरित्र पर शक हो गया था,
उसे लगा था कि,
गर्भ ठहर गया है,
और इसीलिए,
दूध उतर आया है।
उसने देवरानी को आवाज दी,
फिर,
दोनों आपस में खुसुर-फुसुर,
करने के बाद,
एक स्वर में बोलीं
-दिखा
सकुचा सी गयी वह.......
बड़ी भाभी ने उसकी,
एक न सुनी।
ब्लाउज के बटन,
खोलने लगी।
वह भागने को हुई तो,
छोटी भाभी ने कहा-
"उसके सामने नहीं आई थी शरम?"
वह हक्की-बक्की सी ठिठक गई....
पर यह क्या-
बड़ी भाभी के हाथ लगाकर दबाते ही,
खून बहने लगा था।
उस दिन के बाद से,
शुरू हुआ था,
जाँच और इलाज का,
लंबा सिलसिला।
पीड़ा से भर गया था,
तन-मन।
हाय री किस्मत......
नहीं खुल पाये थे,
जो स्तन,
प्रेमी,पति और शिशु के समक्ष,
वो खुले थे,
जाँच और ईलाज के लिए.......
ये प्रक्रियाएं भी कम कष्टप्रद नहीं थीं।
ओपीडी, वार्ड,डॉक्टर, नर्स.....
चेकप, मशीनें,एफ एन ए सी, मेमोग्राफी,
वगैरह वगैरह,
डॉक्टर नर्स अपनी भाषा में,
जाने क्या क्या बोलते,
पर्ची लिखकर फ़ाइल में डालते,
और फ़ाइल के साथ,
इस फ्लोर से उस फ्लोर,
कभी पैदल,कभी व्हीलचेयर पर,
कभी स्ट्रेचर पर वह,
जब जैसी हालत होती,
और सबसे बढ़कर कीमोथेरेपी,
जिसके लिए कहा जाता था,
जान बचाने के लिए है,
पर थी जानलेवा।
जब अच्छी-भली थी,
कोई हाल पूछने वाला नहीं मिला,
जब भाई-भाभी उससे सारा काम करवाते,
तब भी वह बुरा नहीं मानती,
थकती तो कभी थी ही नहीं।
उसे लगता कैसे किसी को जुकाम होता है?
वह तो रात में भी कपड़े धो लेती,
जाड़े में भी सर पर ठंडा पानी डालकर,
नहा लेती।
उसका स्वस्थ और मेहनती होना ही,
अभिशाप हो गया।
अपने मुँह से अपने विवाह की बात,
करती तो कैसे?
भाई भाभी कान में तेल डाले,
उसका विवाह टालते गए।
कई बार सोचा-
भाग जाये किसी छोरे के साथ,
पर,
किसी से मुलाकात तो तब होती,
जब घर से बाहर निकलने की,
कोई गुंजाईश होती,
घर में आनेे वालों से भी उसे दूर ही रखा जाता।
अब जब कोई भी साँस,
आखिरी हो सकती है,
किसी भी पल दम टूट सकता है,
इस डॉक्टर ने जीवन की,
कीमत का एहसास करा दिया है।
जब वो राउंड पर आता है,
बीमारी में भी वो जी उठती है,
इतनी ख़ुशी तो कभी स्वस्थ रहकर भी,
नहीं मिली थी।
याद आता -भाई के आने पर,
भाभी का खिल-खिल जाना।
सोचती ये डॉक्टर मेरा जन्मों का साथी है,
इंसानों ने नहीं मिलवाया,
तो भगवान ने उससे मिलवाने के लिए,
बीमारी दे दी।
और, नहीं तो क्या?
इतने बड़े अस्पताल में,
उसी डॉक्टर के पास,
उसे क्यों भेजा गया।
बचपन याद आता,
उसके लंबे घने बालों में,
तेल डालकर,
हल्के हाथों से थपकी देकर,
मालिश करती हुई,
माँ,
उसका विवाह राजकुमार से,
करने की बातें करती।
अचानक हाथ सर पर गया,
जहाँ अब एक भी बाल नहीं।
पहले दिन डॉक्टर उसके बालों और चेहरे को,
देखता रह गया था।
नर्स समझाती-
"हम देखता,
तुम डॉक्टर के प्यार में पड़ता,
ये उसका काम है,
उधर ज्यादा ध्यान नहीं देने का,
मरीज से प्यार से बोलना,
उसका ड्यूटी है।
वो इधर ज़िन्दगी देने आया है,
इसलिए अच्छे से,
प्यार से बोलता,
उसे हर पेशेंट का ज़िन्दगी,
बाल और स्किन से सिम्पैथी होता।
हम गॉड से प्रे करता-
तुम जब इधर से ठीक होकर जाइनगा,
तुझे डॉक्टर से भी अच्छा हस्बेंड मिले।
वो शादीशुदा है,
उसका मिसेस भी डॉक्टर है,
गेनीकोलॉजिस्ट।
जब तुम्हारा बेबी होइनगा,
तो उसी के अस्पताल में जाना,
मैडम भी बहुत अच्छा,
एकदम इसी का माफ़िक।"
यदि यह डॉक्टर की सहानुभूति है,
तो भी उसके लिए,
यह अनमोल है।
जाने क्या-क्या ख्याल आते रहते,
एक बार भी भाई-भाभी मिलने नहीं आये थे,
जबकि डॉक्टर बता चुके थे ,
कि बीमारी संक्रामक नहीं है।
बीमारी तो थी ही,
मन में उठने वाले सवाल भी,
जीने नहीं देते थे.....
अम्मा-बाबा को इतनी जल्दी क्योँ थी?
जाने की।
भाइयों को इतनी जल्दी क्यों थी,
अपनी शादियों की।
-एक बार भी सोचा होता उसकी शादी के बारे में-
काश!
तभी सामने आकर डॉक्टर ने,
फिर कहा था-
"हेलो"
कैसी हैं आप?"
- "डॉक्टर!
मुझसे शादी कर लो।
मुझे प्यार हो गया है,
तुमसे........
बीमारी से तो मुझे तुम,
बचा ही लोगे,
पर,
तुम्हारी मुस्कराहट,
मेरी जान ले चुकी है।"
-"सिस्टर प्लीज़ कम।
हरी अप।
ब्रिंग स्ट्रेचर।
क्विक।
इमरजेंसी है,
बेड नं 18 पेशेंट की हालत,
बहुत नाज़ुक है,
शी इज सिंकिंग.......
उस पल उसके मन में आया था,
वह डॉक्टर के गले लग जाये,
सीने से चिपट कर कहे,
वह पूरे होशो हवास में है,
उसे सचमुच उससे प्यार हो गया है।
पर यह क्या......
आँखों के आगे अँधेरा - अँधेरा,
कान में फिर डॉक्टर की,
मीठी आवाज़-
"ब्रेव गर्ल!
कम ऑन।
हमलोग दिख रहे हैं?"
_हाँ हाँ...
"यू केम बैक यू नो?"
चेहरे पर वही,
जानलेवा मुस्कान।
-लगता है सच्ची वह होश में नहीं थी,
वरना अब क्यों नहीं बोल पा रही,
वह सब।
मन में होने पर भी,
पहले भी कहाँ बोल पायी थी?
पल भर बाद ही,
वही सवाल,
वही प्यारी आवाज-
"कैसी हैं आप?"
इस बार उसने भी मुस्कुराकर उत्तर दिया-
-अच्छी हूँ डॉक्टर!
मैं जानती हूँ,
आप मुझे मरने नहीं देंगे।
अच्छी कविता है विभा जी, शुभकामनायें।
ReplyDeleteधन्यवाद उमा।
Deleteबहुत ही सुन्दर मैम
Deleteधन्यवाद हिमानी
DeleteWow! Wonderful. Keep on. Poetic spark in you so obvious.you have handled complex feelings so adroitly.
ReplyDeleteThank you.
DeleteWow! Wonderful. Keep on. Poetic spark in you so obvious.you have handled complex feelings so adroitly.
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteदिल को छूने वाला
ReplyDeleteधन्यवाद सीमा
Delete