Thursday 21 April 2016

प्रेम - प्रस्ताव

उसकी दीवानगी,
मेरी समझ से परे थी,
न जाने क्यों........
मरती थी वो मुझ पर।
क्या ?
आप नहीं मानते,
हाँ....
ऐसा उसने तब तक मुझसे,
कहा तो नहीं था,
पर उसकी आँखें.......
आँखों की भाषा,
किसी ज़ुबां की मोहताज होती है भला?
हाँ मुझे भली-भांति एहसास था कि,
मुझसे कहीं बेहतर कई लड़के थे,
जो उसकी एक झलक पाने को,
गली के मोड़, नुक्कड़,
या उसके कॉलेज के रास्ते में,
यहाँ-वहाँ,
घंटों उसकी प्रतीक्षा में खड़े रहते थे।
पर वो दीवानी लड़की,
उसकी आँखों पर तो जैसे पट्टी बंधी थी,
सिवा मेरे,
वो कहाँ ध्यान देती थी,
किसी की तरफ़,
ढूंढ ही निकालती थी,
वो मुझे,
चाहे जिस किसी भी,
कोने में चला जाऊँ,
एक दिन मेरे सबसे खास दोस्त ने,
जो मेरा रूम मेट भी था,
समझाते हुए कहने लगा.....
"तू भाव बढ़ाए बैठा रह,
वो किसी के साथ निकल लेगी।
यार,
तेरी जगह मैं होता तो..."
तो क्या?
बता न चुप क्यों हो गया?
-"यार , नैतिकता आड़े आ रही है,
दोस्त की गर्लफ्रेंड...
भाभी समान,
और भाभी माँ समान..."
साले का भाषण सुन,
मैं ठठा कर हँसा,
और उसकी पीठ पर,
धौल जमाकर कहा-
तू भी न.....
मुझसे मार खायेगा,
इतनी दूर पहुँच गया..
मैं उससे दूर-दूर
भागता हूँ....
तुझे पता है न।
अच्छा ही होगा,
अगर मेरी जगह वो,
तुझे पसंद करे,
वैसे भी मेरे पास,
गरीबी के सिवा कुछ नहीं,
नोकरी न जाने मिलेगी भी या नहीं,
और मिलेगी भी तो,
पता नहीं कब तक?
तभी अचानक,
मेरे सामने आ गयी थी वह,
शायद पीछे ही खड़ी थी,
पता नहीं कब,
मुझे ढूंढती हुई आ गयी थी,
और संभवतः,
हमारी बातें भी सुन चुकी थी।
मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोली-
"अगर मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती,
तो मैं अपने दिल को,
समझा लुंगी,
अगर और किसी भी कारण से,
इन्कार किया,
तो उस कारण को मैं दूर करुँगी।
फिर,
मेरा हाथ पकड़ कर बोली-
"आई लव यू"
मैं शरमा गया,
नज़रें ज़मीन में गड़ गईं,
तिरछी नज़रों से दोस्त की तरफ देखा,
वो मुस्कुरा रहा था।
दुबारा बोली-
"आई लव यू"
पता नहीं क्यों और कैसे-
मेरे मुँह से अचानक निकल गया था-
"आई लव यू टू"

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