Monday 16 March 2015

एक बार फिर

आप अंदर जा सकती हैं” चपरासी की आवाज़ सुनकर शालिनी की तंद्रा टूटी। नेमप्लेट पर “प्राचार्या शारदा देवी” लिखा देख कर वह अतीत में खो गई थी। वह धीरे से उठी और चार कदम की दूरी को चार मिनट में तय किया। पाँव उठ नहीं रहे थे, अंदर जाकर शारदा से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, पर बिना मिले भी रहा नहीं जा रहा था अतः उस ने साहस जुटाकर धीरे से दरवाजा खोला, सामने कुर्सी पर शारदा मुस्कुराती दिखी, नजरें मिलते ही उसकी मुस्कान चौड़ी हो गई कुर्सी से उठकर उसने अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाया। शालिनी मुस्कुरा नहीं पाई, फिर भी हाथ आगे बढ़ाकर शारदा से हाथ मिलाया।
      ‘’बैठो’’ शारदा ने शालिनी से कहा और स्वयं भी बैठ गई।
शालिनी सामने की कुर्सी पर बैठ गई। शारदा ने चपरासी को बुलाने के लिए बेल दबाया। चपरासी के पहुँचते ही आदेश दिया “राजू पहले पानी लाओ, फिर कैंटीन से दो समोसे और दो कप अदरक वाली चाय। “औपचारिकता की कोई आवश्यकता नहीं है।” शालिनी ने धीरे से कहा।
“शालिनी हम पूरे चौंतीस साल बाद मिल रहे हैं। कुछ तो होना ही चाहिए।”
“शारदा, तुम्हें आज तक मेरी पसंद याद है, यह जानकर बहुत खुशी हुई लेकिन अब न मैं समोसे खाती हूँ और न ही अदरक वाली चाय पीती हूँ।“
“क्यों डॉक्टर ने मना किया है?”
“नहीं, लेकिन ज़िद मत कर प्लीज।“
“ठीक है, फिर दो ग्लास नींबू पानी ले आओ” चपरासी के जाने के बाद शालिनी ने कहा-
                                                                         “शारदा, समोसे और अदरक वाली चाय वास्तव में मेरी पसंद नहीं, बल्कि उसकी पसंद थी जिसे मैं पसंद करती थी, और इसलिए उसकी पसंद को अपनी पसंद बना लिया था। आज मैं उससे नफरत करती हूँ और उन सभी चीज़ों से जो मुझे उसकी याद दिलाए।”
       “रिलैक्स, शालू!  जीवन में सबकुछ मनचाहा नहीं होता बहुत कुछ अनचाहा हो जाता है, जिन्हें हमें स्वीकार करना पड़ता है। वैसे, जब तक तू मुझे पूरी बात नहीं बताएगी, न मैं कुछ समझ पाऊँगी न समझा पाऊँगी लेकिन इतना पक्का है कि तुम बहुत दुखी हो। मैं तुझमें उस पुरानी चंचल शोख शालू को देखना चाहती हूँ।”
       “पुरानी शालू मूर्ख थी, जिसने तेरे जैसी हीरे की कद्र नहीं की। काश! मैंने तेरी बात मानी होती।”
       “शालू, तू हीं नहीं प्यार में हर इंसान दिमाग़ की बजाय दिल से सोचता है।”
         इतने में चपरासी ने दरवाज़े पर दस्तक दी
- “आ जाओ” शारदा ने कहा।
चपरासी नींबू पानी के दो ग्लास रखकर चला गया।
       शारदा ने एक ग्लास उठाकर शालिनी की तरफ़ बढ़ाया, शालिनी ने ग्लास लेकर पीना शुरू कर दिया।
       शारदा ने दूसरा ग्लास उठाकर एक घूँट लिया और मुस्करा कर बोली- “शालू, तू आज भी उतनी हीं खूबसूरत लगती है। आज भी तुझे देख कर वही पहले वाली फीलिंग आ रही है कि मैं तेरे जैसी सुंदर क्यों नहीं।”

-शेष आगे  

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