Friday 20 March 2015

एक ही गमले के पौधे

हम दोनों हैं,
एक ही गमले में उगे दो पौधे,
अन्तर यही है,
कि तुम्हें,
सयत्न लगाया गया,
और मैं,
यूँ ही उग आई।
गमले में दिया जाता था,
जो भी,
पानी-खाद आदि,
वह होता तो था,
तुम्हारे लिए,
पर,
उसका कुछ अंश,
मुझे भी मिल जाता था।
तुम्हें था भली-भाँति एहसास,
कि तू है,
माली को निहायत अज़ीज,
और इसीलिए तू,
होता गया,
अक्खड़,
बदतमीज़,
स्वार्थी,
गुस्सैल,
और मैं बेचारी,
कोने में दबी सी,
बचे-खुचे में,
जीने की कोशिश करती,
बन गयी थी,
बेहद डरपोक,
दब्बू,
और मुंहचुप्पी।
मैं एहसानमंद थी कि,
तेरे खाद-पानी के अंश से,
मुझे मिला था जीवन,
लेकिन तुझे थी,
ईर्ष्या,
कि मैं ने बाधा पहुँचाई थी,
तेरी आज़ादी में,
बाँट लिया था,
तुम्हारा सब कुछ।
पर,
एक बार भी नहीं गया,
तुम्हारा ध्यान,
इस बात पर,
कि माली को,
हो गया था,
मुझसे भी लगाव,
भले ही मैं,
यूँ ही उग आई थी,
पर, उखाड़ फेंकने की बजाय,
उसने मुझे भी,
पलने-बढ़ने दिया था।

No comments:

Post a Comment