जिन गुणों को सीखा
बचपन से,
बड़े होकर वे ही
हार का कारण बनने लगे।
सच बोलकर मैं
पीछे छूटती गई
झूठ बोलने वाले
आगे निकलते गए।
बहुत बार मैंने देखा,
आगे निकलने वाले
पीछे मुड़कर मुझे
देखते हैं,
देखकर हँसते हैं,
साथवाले को इशारा
करते हैं,
और फिर साथवाले
भी हँसते हैं।
उस हँसी में कितना
ज़हर होता है,
ये मेरा दिल जानता है,
पर फिर भी नहीं
सीख पाती झूठ बोलना
क्योंकि बचपन की
आदतें आसानी
से नहीं छूटतीं।
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