Thursday 19 March 2015

इंतज़ार

गुज़ार दिये हैं,
अपने जीवन के,
कितने ही पल,
उसने इंतज़ार में ।
बहुत बार खाई कसमें,
अब नहीं करेगा इंतज़ार।
कभी नहीं,
कभी भी नहीं,
न किसी मित्र का,
न किसी अच्छी खबर,
न किसी पर्व-त्योहार,
बस,ट्रेन या फिर,
किसी खूबसूरत सुबह या,
खुशनुमा शाम का।
जब भी,
जिसका भी,
किया इंतज़ार,
वह आकाशकुसुम होता गया ........
और,
उन इंतज़ार की ,
बेकरारी के क्षणों में,
खो दी है उसने,
वो खूबसूरत घड़ियां,
जिनमें वह गुनगुना सकता था,
कोई मधुर गीत,
बना सकता था कोई सुंदर चित्र।
सीख सकता था,
 कोई साज़ बजाना।
या फिर, पढ़ सकता था,
कोई अच्छी किताब।
पर न जाने क्यों,
ये इंतज़ार की आदत,
छूटती ही नहीं,
और,
बेकरारी में,
यूँ हीं,
व्यर्थ करता रहता है वह,
अपने जीवन की अनेक अनमोल घड़ियां।    

No comments:

Post a Comment