निकली थी हीरे की
तलाश में,
टकराती रही कोयलों और पत्थरों से
पर हिम्मत न हारी,
घबराई भी नहीं
उपहासों की कर उपेक्षा,
मन ही मन दुहराती रही संकल्प
कभी गिरती कभी उठती
चलती रही
बस, चलती रही।
अनवरत, अथक परिश्रम
करते थे नवीन ऊर्जा का संचार
थकान भर देती थी, नई आशा।
असफलता के साथ
सशक्त हो रहा था धैर्य।
दर्द के साथ, बढ़ती जा रही थी
सहन-शक्ति।
और,
एक दिन मिला हीरा
इतनी सहजता से
जैसे वह स्वयं चलकर आया हो।
उसे पाकर ख़ुशी से आँखें छलक पड़ीं
मुस्कुरा कर उठाया, हाथों से सहलाया
आँखों और होठों से स्पर्श कर
ह्रदय के समीप रखा।
शिकायती लहजे में कहा
-कहाँ थे अब तक?
कितना सताया मुझे?
तभी हीरे से आवाज़ आई
-मैंने भी की है लंबी प्रतीक्षा !
पल-पल आहट सुन कान थकने लगे थे
राह देख-देख आँखें दुखने लगी थीं
बड़ी कठिनता से,
उम्मीदों को बिखरने से रोका
तब जाकर पूरी हो पाई आज
-एक सच्चे जौहरी की तलाश।
तलाश में,
टकराती रही कोयलों और पत्थरों से
पर हिम्मत न हारी,
घबराई भी नहीं
उपहासों की कर उपेक्षा,
मन ही मन दुहराती रही संकल्प
कभी गिरती कभी उठती
चलती रही
बस, चलती रही।
अनवरत, अथक परिश्रम
करते थे नवीन ऊर्जा का संचार
थकान भर देती थी, नई आशा।
असफलता के साथ
सशक्त हो रहा था धैर्य।
दर्द के साथ, बढ़ती जा रही थी
सहन-शक्ति।
और,
एक दिन मिला हीरा
इतनी सहजता से
जैसे वह स्वयं चलकर आया हो।
उसे पाकर ख़ुशी से आँखें छलक पड़ीं
मुस्कुरा कर उठाया, हाथों से सहलाया
आँखों और होठों से स्पर्श कर
ह्रदय के समीप रखा।
शिकायती लहजे में कहा
-कहाँ थे अब तक?
कितना सताया मुझे?
तभी हीरे से आवाज़ आई
-मैंने भी की है लंबी प्रतीक्षा !
पल-पल आहट सुन कान थकने लगे थे
राह देख-देख आँखें दुखने लगी थीं
बड़ी कठिनता से,
उम्मीदों को बिखरने से रोका
तब जाकर पूरी हो पाई आज
-एक सच्चे जौहरी की तलाश।
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