छाई रहती दिल पर,
जो ग़मों की बदली,
दरअसल,
वो तेरी यादों का साया है।
कर न सके कुछ भी,
तुम्हारे लिए,
यूँ तो तुझे हमने,
शिद्दत से चाहा है।
लगी ठेस फिर भी,
रुके तो नहीं,
मुश्किलों के सामने,
झुके तो नहीं।
हर खुशी ने,
तेरी कमी का,
एहसास कराया है।
बनने-बिगड़ने का,
करे कौन हिसाब,
इतने सवालों के,
कौन दे जवाब।
बनना है मुश्किल,
बिगड़ना आसान,
कर सकता है सिर्फ,
कोशिश इंसान।
हर अरमां निकल जाए,
ये कब मुमकिन हो पाया है।
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