Friday 20 March 2015

सामर्थ्य

पता चल जाता है,
तुम्हारा हाल-चाल,
औरों के माध्यम से।
सुना है,
बड़े ठाठ हैं तुम्हारे।
बड़ी चर्चाएँ सुन रखी हैं,
तुम्हारे शौकीन स्वभाव की,
तुम्हारे सजे ड्राइंग-रूम और,
तुम्हारे लक-दक कपड़ों की।
परमुझे याद आती है,
जब भी तुम्हारी कोई बात,
तो उसमें होती है अक्सर…….
मजबूरी की गाथाएँ,
पैसे की किल्लत,
अभावों का रोना,
पाई-पाई जोड़ कर,
किसी तरह,
दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की,
खाना-पूर्ति का जिक्र.....
पता नहीं,
तुम्हें क्यों,
डर लगता है,
कि मैं,
माँग लूँगी तुमसे,
कहीं रुपया-पैसा,
या कोई उपहार।
क्यों इतना घबराते हो?
मेरे सामने हँसने-मुस्कुराने से,
कि कहीं मैं जान न लूँ,
तुम्हारे सुखी जीवन के,
अध्याय को।
क्यों डरते हो,
पास खड़े होने से,
कि कहीं मुझ तक न पहुँच जाए,
तुम्हारे बदन पर लगे,
कीमती परफ्यूम की गंध।
भरोसा रखो,
न मैं चोर-डाकू,लुटेरा हूँ,
और न ही भिखारी।
मुझमें कमाकर,
अपना और अपनों की,
ज़रूरत पूरी करने की,
सामर्थ्य है।         

1 comment: