Monday 23 March 2015

नैतिकता

उसने किताबों में पढ़ा था-
झूठ बोलना पाप है,
चोरी करना पाप है।
किन्तु हकीकत में देखती थी,
रोज़ यही सब।
समझ नहीं पाती थी-
ऐसा क्यों है ?
बार-बार सोचती-
आखिर ऐसा क्यों है ?’
उसने देखा अक्सर,
ऐसे लोगों को,
लाभान्वित होते,
गाहे-बगाहे,
मित्रों-रिश्तेदारों ने,
सिखाया-
दुनियादार बन,
छोटा-मोटा झूठ,
झूठ नहीं होता।
अपने हित के लिए,
थोड़ा-बहुत,
कुछ छुपा लेना,
चोरी नहीं होती।
मतलब ?
वह सोच में पड़ जाती-
क्या चोरी सिर्फ वही है,
जो किसी के घर का ताला,
तोड़ कर की जाये।
किसी का हक मार लेना,
क्या चोरी नहीं ?
आखिर तूने पूरी दुनिया का,
ठेका ले रखा है,
-तेज बन,
दौलत बना,’
निःशब्द हो गयी थी,
आज फिर से,
जब अपनों ने ही दी थी यह सलाह,
ये वही अपने थे,
जो इसे जान से भी प्रिय थे,
नहीं दे पाई थी कोई करारा उत्तर-
सोचती रह गयी थी-
मन-ही मन में,
आखिर,कब तक हम,
नैतिकता का पाठ,
सिर्फ किताबों में,
पढ़ते-पढाते रहेंगे ?’   
  

           

No comments:

Post a Comment