Thursday 19 March 2015

रिश्ते

उसने जब भी कोशिश की है ,
कि सुलझा ले कोई झगड़ा,
दूर कर दे गलतफहमियाँ ,
झगड़ा और बढ़ गया,
गलतफहमियाँ,
यकीन में बदल गईं।
जिनको भी रखा सर आँखों पर,
उन्हें,
बेवकूफ दिखने लगी वह,
अक्सर चुप रह गयी,
पीड़ाएँ सहकर भी,
रिश्ते बचा लेने के लिए।
क्योंकि उसका मानना था,
कि रिश्तों की अहमियत,
उसके अहम से कहीं अधिक है।
पर, उसकी चुप्पी का अर्थ,
लगाया गया,
पिछड़ापन,
उसकी विनम्रता को,
कायरता समझा गया।
उसकी सज्जनता का तात्पर्य सबने,
कमजोरी जाना।
उसकी धीमी आवाज़ को,
बेचारगी कहा गया।
फिर भी,
हँसती हुई वह,
सहती गयी सब कुछ।
यह सोच कर कि,
यदि एक व्यक्ति भी,
 समझदारी से काम ले,
तो,
दूर हो जाएँगी गलतफहमियाँ।
और इसी तरह,
रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने के लिए,
लुटाती रही वह ,
अपना प्रेम, श्रम,समय,
और,
अति कठिन श्रम से कमाए पैसे,
पर आखिर,
हार ही गयी वह,
अंततः चुक गयी उसकी सहनशीलता,
बोल पड़ी वह,
ऊँची आवाज़ में,
और उसके बोलते ही,
टूट गए ,
वे सारे संबंध,
जिन्हें उसने,
अपना अस्तित्व,
दाँव पर लगाकर सँजोया था।      

3 comments:

  1. nicely written... actually its a satire what we experience in our relationships...whether one should keep quite or speak up about the issues in their relationships..good liked it..!

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  2. हमेशा की तरह रिश्तों की सच्चाई का सटीक चित्रण किया है तुमने।यही हकीकत है। कहने के लिए हम बातें जितनी कर लें,किसी भी रिश्ते में गहराई तभी तक दिखती नज़र आती है जबतक तुम मौन हो।

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  3. हमेशा की तरह रिश्तों की सच्चाई का सटीक चित्रण किया है तुमने।यही हकीकत है। कहने के लिए हम बातें जितनी कर लें,किसी भी रिश्ते में गहराई तभी तक दिखती नज़र आती है जबतक तुम मौन हो।

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