Monday 30 March 2015

दिल को है सब पता

तेरी बेवफ़ाई पर नहीं हुआ,
थोड़ा भी आश्चर्य !
जैसे मुझे इसका एहसास था,
पहले से।  
बहुत बार पढ़ा था,
मैं ने तुम्हारी आँखों को।
उन आँखों को,
जिनमें मेरे प्रति,
नहीं था कोई लगाव कभी भी।
पर फिर भी,
लगा रखी थी मैं ने,
अपनी आँखों पर,
प्रेम की पट्टी।
अंदाज़ा था-
पहले से,
जिस दिन हटेगी,
यह पट्टी-
मेरी आँखें चौंधिया जाएँगी,
नहीं खुल पाएँगी पूरी तरह,
शायद खुलेंगी,
आहिस्ते से,
और ढूंढेंगी तुझे।
पर, नहीं हुआ कुछ भी ऐसा,
जैसे-
दिल-दिमाग, आँखें,
सब हो रहे थे,
पहले से ही तैयार !
भीतर से......
इस उपेक्षा को सहने के लिए।
पर,क्या करूँ ?
अब भी हृदय यही चाहता है,
न हटने दूँ,
यह प्रेम की पट्टी,
आँखों से,
जबकि इसी हृदय ने,
स्वयं को संभाल लिया है,
सहज हो चुका है।
ऊपर से संयत है,
मस्तिष्क और समस्त इन्द्रियों के साथ।
जान चुका है भली-भाँति,
अपने प्रेम का दुष्परिणाम,
पर फिर भी ज़िद है कि,
करता ही रहेगा वफ़ा,
लाखों बार बेवफ़ाई सहकर भी।
देता ही जाएगा दुआएं,
लाखों बददुआएं
सुनकर भी।
करता ही जाएगा सज़दा,
लाखों बार,
ठुकराए जाने पर भी।           

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