Sunday 4 December 2022

नाश्ता और टिफिन 1

 नाश्ता और टिफिन1


बासी रोटी खाती

अशरफी उगलती है

जी हाँ!

कामकाजी महिला है

नौकरी करती है

अपने ओहदे

और पावर को

परिवार-समाज से

छुपाती है

सिरचढी का तमगा

पाने से डरती है

बोलना तो जैसे

भूलने लगी है

घर हो या दफ्तर

सुनती रहती है

अंग-अंग 

टूटा-टूटा सा

पोर-पोर में

घर है दर्द का

सह-सह कर

मुस्कुराती रहती है

हाँ! उसके

ठहाके पर

पाबंदी है

अरसा हुआ

बालों में तेल डाले

सूखे बालों में बस

ऊपर ही ऊपर

कंघी कर

जुड़ा बना लेती है

उसकी नौकरी से

सब खुश हैं

रहें क्यों न

ड्यूटी के अलावा

घर-बाहर के

सारे काम भी करती है

पर गुरेज है न

उसके निर्णय लेने से

उसे क्या

लेना-देना

फैसले तो उसे

सुनने हैं

और उसके मुताबिक

काम करने हैं

नींद ने आँखों में

फिक्स्ड डिपॉजिट 

कर ली है

वह भले बैंक में

औरों की

फिक्स-डिपॉजिट

करती हो

सबको खुश

रखते-रखते

भूल गई है

अपनी खुशी

सबकी खुशी में

खुश हो लेती है

पाई-पाई जोड़

खड़ा किया

शीश महल

पर उससे क्या

ढाक के तीन पात

एक कोने में

रिजेक्टेड पीस सी

पड़ी रहती है।


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