निर्णय
शाम ढली है
उम्मीद नहीं
उनींदी शाम
अपने साये तले
उम्मीद के
कोमलतम तंतुओं
को दे रही आकार
नभ के पार
भी है नभ
धरती तले
भी है धरती
अपनी सीमाओं
से अनजान
अज्ञानी
कहता है
कुछ बचा कहाँ
हवा को
देख पाने को
पैनी दृष्टि
तो हो
जल के बीच
रहने वालों को
जुकाम नहीं होता
मेरे प्रत्यक्ष जो भी है
अपर्याप्त है
परोक्ष को
महसूस कर
ही करूँगी
कोई निर्णय।
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