चुटकी भर सौहार्द्र
जाना सहृदयों का
इस संसार का
थोड़ा और
रुक्ष हो जाना
बढ़ना बेगानेपन के भाव का
घटना सौहार्द्र का
ये धरती
अपनी नमी और शीतलता
नदी अपनी तरलता
क्यों हमसे
वापस लेती जा रही
छीज रहा स्नेह
मिट्टी की सोंधी खुशबू
कहीं विलीन होती जा रही
हवा की
हल्की गर्माहट
बर्फ की ठंडक
और कठोरता में
ढल रही
इस दुनिया को
बचा लें
आओ हाथ बढ़ाएं
संभालें उतना
कम से कम
जितना
अपनी हथेलियां
थाम सकें
उपजाएँ सौहार्द्र
चुटकी भर ही सही।
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