Saturday 24 December 2022

चुटकी भर सौहार्द्र

 चुटकी भर सौहार्द्र


जाना सहृदयों का

इस संसार का

थोड़ा और

रुक्ष हो जाना

बढ़ना बेगानेपन के भाव का

घटना सौहार्द्र का

ये धरती

अपनी नमी और शीतलता

नदी अपनी तरलता

क्यों हमसे

वापस लेती जा रही

छीज रहा स्नेह

मिट्टी की सोंधी खुशबू

कहीं विलीन होती जा रही

हवा की

हल्की गर्माहट

बर्फ की ठंडक

और कठोरता में

ढल रही

इस दुनिया को

बचा लें

आओ हाथ बढ़ाएं

संभालें उतना

कम से कम

जितना

अपनी हथेलियां

थाम सकें

उपजाएँ सौहार्द्र

चुटकी भर ही सही।


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