लिहाज़
सफेद परिधान पर
खून के छींटे
छुपाए नहीं
छुपते थे
अब पूरा लिबास ही
रंग गया है
खून में
देखनेवालों की हैरत पर
परिधान का
उत्तर था-
खून दूसरों का नहीं
मेरा है
बहाता रहा हूँ
समय-समय पर
देश के लिए
समाज के लिए
हैरत से
देखने वाले
फिर कभी
दिखे ही नहीं
हाँ सुनने में आया है
वे भी टपका दिए गए हैं
खूनी परिधान
घूमता है
पूरी निडरता से
उससे डरकर लोग
खिड़की-दरवाजे
बंद कर लेते हैं
ऐसी दहशत को
कोई दहशत
नहीं कहता है
सब कहते हैं
समाज में उनकी
इज्जत है, रुतबा है
बड़े-छोटे सभी
उनका खूब-खूब
लिहाज़ करते हैं
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