Sunday 18 December 2022

लिहाज़

 लिहाज़


सफेद परिधान पर

खून के छींटे

छुपाए नहीं

छुपते थे

अब पूरा लिबास ही

रंग गया है

खून में

देखनेवालों की हैरत पर

परिधान का

उत्तर था-

खून दूसरों का नहीं

मेरा है

बहाता रहा हूँ

समय-समय पर

देश के लिए

समाज के लिए

हैरत से

देखने वाले

फिर कभी

दिखे ही नहीं

हाँ सुनने में आया है

वे भी टपका दिए गए हैं

खूनी परिधान

घूमता है

पूरी निडरता से

उससे डरकर लोग

खिड़की-दरवाजे

बंद कर लेते हैं

ऐसी दहशत को

कोई दहशत 

नहीं कहता है 

सब कहते हैं

समाज में उनकी

इज्जत है, रुतबा है

बड़े-छोटे सभी

उनका खूब-खूब

लिहाज़ करते हैं


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