रोटी बनाम लड़की
कलम छोड़कर
गर्म तवे पर
रोटी रखती
पतली उंगलियां
जैसे रोटी के साथ
पक रही है लड़की
उलट-पुलटकर
रोटी फुलाती
सिंक रही है लड़की
अभी वयः संधि
पर खड़ी है
जिस उम्र के लिए
कवियों ने कहा था कि
बचपन गया नहीं
पर युवावस्था के
लक्षण प्रकट
हो गए हैं
नहीं
रीतिकालीन नायिका
नहीं है लड़की
उस ज़माने की
आधुनिक नवयुवती है
जिसमें बेटी-बेटे में
फ़र्क न किये
जाने के
जोरदार दावे
किए जा रहे हैं
रसोई का तापमान
तकरीबन
पचास डिग्री है
सोलह डिग्री तापमान वाले
वातानुकूलित बेडरूम तक
गरम रोटी परोसती
शरद-गरम
हवा के थपेड़ों से गुजरती
झुलस रही है लड़की
रोटी कच्ची रह गई
फूली नहीं
गोल नहीं बनी
किस देश का नक्शा
बना लाई
अरे पूरी रोटी
जली हुई है
तानों से कानों और
मन के कोनों को
भर रही है लड़की
आ रही है और
भी आवाज़
लड़कियों को
भूलना नहीं चाहिए
लाज-लिहाज़
झुकी रहें पलकें
बँधी रहें अलकें
आदेशों-उपदेशों
के बोझ तले दबी
हुक्म बजाती
ससुराल जाने की
ट्रेनिंग पूरी करती
परम्परा निभाती
तर्क सम्मत
उक्तियों को
मन में दबाकर
हाँ-ना में
सर हिला रही है लड़की
सबकी आँखें हैं
पर कोई देखता नहीं
भीतर ही भीतर
कितना टूट रही है लड़की।
No comments:
Post a Comment