महाप्राण
अमीरों की हवेली
गरीबों की पाठशाला
नहीं बन सकी
धोबी, पासी, चमार,
तेली अंधेरे का ताला
नहीं खोल सके
ये असंवैधानिक
जातिसूचक
शब्द हम
इस्तेमाल कर रहे
अपने लिए ही
करना पड़ा होगा
न चाहते हुए
तुम्हें भी
यही तो
रहे हैं
हमारे संबोधन
सदियों से
प्रयोग होते रहे
धड़ल्ले से
जिसकी आदत
पड़ चुकी
हमारे कानों
और सबकी
जिह्वा को
पर तुम्हारी
सच्ची
सद्भावना थी
हमारे लिए
हमारे साथ
खड़े थे तुम
तन – मन – जीवन से
पर कहाँ
मिट सका अंधेरा
महाप्राण!
तुम हमारे
उज्ज्वल भविष्य के
लिए एक
क्रांतिकारी कवि रहे
तुम्हारी दी
ज्योति से
हमने बाँचे हैं अक्षर
खुरपी – कुदाल
थामे हुए
चलाने लगे कलम
आज बड़े से बड़ा
संस्थान दे रहा हमें
नॉट फाउंड सूटेबल
के सर्टिफिकेट्स
अब हमारी
योग्यता की
कितनी परीक्षा
होगी और?
अपने कद से
लंबी
अकादमिक प्रोफ़ाइल
लिए शिक्षण
संस्थानों पर
सिर पटक
हो रहे
हम लहु – लुहान
हमें राम,
पासवान,
महतो, चौरसिया,
राउत, भगत
आदि – इत्यादि कह
ऐसे संबोधित
किया जाता है
जैसे हम
पैदा ही
हुए हैं
अपमानित होने
के लिए
महाप्राण!
क्या
ला पाओगे
हमारे लिए
थोड़ी सी संवेदनशीलता
जब हमारे
प्रतिनिधित्व को
मिल सके
स्वीकृति
तथाकथित बुद्धिजीवी
आभिजात्य समाज में
ताकि हमारी
योग्यता को
देखा जाए
न कि
हमारी जाति को
महाप्राण
अकिंचन हूँ
संघर्ष से
घायल हूँ
जो आहत कर रही
अपनी वाणी से तुम्हें
तो क्षमा चाहती हूँ
पर क्या करूँ
तुम्हारी कविता
आज तक फलीभूत
होती नहीं
दिख रही
जूही की कली
सब को
भाती है
पर पत्थर तोड़ती
युवती के हाथों
में कलम
किसी को
सूट नहीं करती
और उसे
बारंबार
नॉट फाउंड सूटेबल
का तमगा
दे दिया
जाता है।
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